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सब तो यहाँ हैं अजनबी

हाँ प्यार से इकरार है

पर शिर्क से इंकार है

 

अब दिल में वो जज़्बा नहीं

बस प्यार का बाज़ार है 

 

मेरा ठिकाना क्या भला

जब बिक चुका घर-बार है

 

आँखों में हैं सपने जवाँ

एक बीच में दीवार है

 

ये शाम तो अब ढल चुकी

बाकी मगर ख़ुमार है

 

है काम आती कोशिशें

यूँ हारना बेकार है 

 

दिल में वफ़ादारी नहीं

क्यों प्यार का इज़हार है 

 

अब नींद भी आती नहीं

जब जिंदगी बेज़ार है

 

वादा किया तुमने नहीं

तेरा मगर इंतज़ार है

 

थी प्यार में ताकत बहुत

क्यों प्यार अब लाचार है

 

लेता नहीं है सुध कोई

पूरा भरा परिवार है

 

चाहो परखना गर हमें

हम तो सदा तैयार हैं

 

पल में बदल जाए कथन

कैसा तेरा किरदार है

 

सब तो यहाँ हैं अजनबी

किससे कहें के प्यार है 

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Comment by वीनस केसरी on December 12, 2012 at 1:52am

बहुत खूब ....

चाहो परखना गर हमें
हम तो सदा तैयार हैं

शानदार जज़्बा है

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 11, 2012 at 1:27pm

शानदार अभिव्यक्ति हेतु बधाई 

सादर 

Comment by नादिर ख़ान on December 11, 2012 at 11:58am

"हौसला अफजाई के लिए धन्यवाद भाई सूर्या बाली जी ..."

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on December 11, 2012 at 10:25am

नादिर भाई नमस्कार!

छोटे बहर में अच्छी ग़ज़ल हुई है...खास कर ये शेर बहुत अच्छा लगा:

आँखों में हैं सपने जवाँ

एक बीच में दीवार है॥

दाद कुबूल करें! 

Comment by नादिर ख़ान on December 11, 2012 at 10:17am

शुक्रिया जगदानंद जी ......

Comment by जगदानन्द झा 'मनु' on December 11, 2012 at 12:08am

सुन्दर भावाभिव्यक्ति, बधाई नादिर ख़ान साब 

 

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