गाँव की विधवाओं को सरकार की ओर से सहायता राशि वितरित की जा रही थी. तभी एक नौजवान विधवा अपने हिस्से की धनराशि लेने मंच की ओर बढ़ी, जिसे देख नेता जी ने सरपंच के कान में धीरे कहा,
"ये लड़की कौन है ?"
"ये नंदू लुहार की बहू है नेता जी."
"अरे भई इसको तो बाकियों से ज्यादा पैसा मिलना चाहिए था."
"वो क्यों नेता जी ?"
"अरे मुखिया जी, ज़रा बॉडी तो देखिए ससुरी की."
Comment
गन्दी मानसिकता, जो आँखों से ही स्त्रीत्व का चीर हरण करते हैं इसका जबरदस्त उदाहरण है ये लघु कथा जो अन्दर से रोष युक्त कर मन को झकझोर देती है बधाई आपको इस लघु कथा के लिए|
आपकी इस कसी हुई रचना के लिए हार्दिक बधाई एवं नमन, बरबस ही मंटो की स्मृति कौंध गई, सादर
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी,
सादर नमन!
शक्ति पूजा की अवधारणा पर कैसा तमाचा है इस प्रकार की कुत्सित मानसिकता, जो समाज में जहां तहां व्याप्त है..
लघुकथा में समाज की यह विद्रूपता भली प्रकार से स्पष्ट हुई है.
हार्दिक बधाई इस सत्यपरक लघुकथा के लिए.
आदरणीय योगराज सर जी सादर प्रणाम
कुटिल मानसिकता पर करारा प्रहार करती हुई इस रचना के लिए साधुवाद सर जी
समाज ऐसे दोमुखी सफेदपोशों से भरा हुआ है
उसी वक़्त यदि मुखिया जी नेता जी के मुंह पर जोरदार तमाचा जड़ दिया होता तो उनकी आँखें खुल जाती
लेकिन मुखिया भी कहाँ दूध के धुले हैं
उन्होंने तो इस पर जोरदार चुटकी लेते हुए अपने अधरों पर कुटिलता भरी मुस्कान सजा ली होगी
बेहद सार्थक व्यंग रुपी कथा कही है सर जी
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