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मन एक सागर
जहाँ ;
भावनाओं की जलपरियाँ
करती हैं अठखेलियाँ
विचारों के राजकुमारों के साथ ;
घात लगाये छुपे रहते
क्रोध के मगरमच्छ ;
लालच की व्हेल भयंकर मुँह फाड़े आतुर
निगल जाने को सबकुछ ;
घूमते रहते ऑक्टोपस दिवास्वप्नों के ;
आते हैं तूफान दुविधाओं के ;
विशालता ही वरदान है
और अभिशाप भी ;
अद्भुत विचित्रता को स्वयं में समेटे
एक अनोखा सम्पूर्ण संसार है
जो सीमाओं में रहकर भी
सीमाओं से मुक्त है ;

मन एक सागर
जहाँ ;
अतीत डूब के अपने अनुभवों से
प्रशस्त करता है मार्ग
भविष्य का ;
ऊपरी सतह को देख के
असंभव है अनुमान लगाना
तलहटी की वास्तविकताओं के बारे में ;
अथाह जल के मध्य स्थित द्वीप
पर्याप्त हैं बताने के लिए
ठहराव अल्पकालिक होता है
बहाव ही प्रकृति का मूल है ;
पग-पग पर दृष्टिगोचर होते है उदाहरण
धैर्य एवं संयम के लाभ के ;
गहराइयों में जाकर ही
मिलते हैं धर्म के सीप
मर्यादित आचरण के मोती लिये |

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Comment

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Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on October 4, 2012 at 10:59am

आदरणीय गुरुदेव.......स्नेह से भरी आपकी प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार........


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 3, 2012 at 10:35pm

वाह ! वाह-वाह !!

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 3, 2012 at 7:02am

स्वागत है अनुज !

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on October 3, 2012 at 6:59am

आदरणीय अग्रज अम्बरीश जी..........आपसे सराहना पाकर मन गदगद हुआ........आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.........

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 3, 2012 at 6:57am

//ठहराव अल्पकालिक होता है
बहाव ही प्रकृति का मूल है ;
पग-पग पर दृष्टिगोचर होते है उदाहरण
धैर्य एवं संयम के लाभ के ;
गहराइयों में जाकर ही
मिलते हैं धर्म के सीप
मर्यादित आचरण के मोती लिये |//

कुमार गौरव जी, मन सागर की गह्रराइयों में डूब-डूब कर आपके द्वारा चुने हुए ये समस्त मोती स्वयं में लाजवाब हैं ........बहुत बहुत बधाई मित्र !

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on October 3, 2012 at 6:48am

आदरणीया राजेश जी.........सराहना के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद...........

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on October 3, 2012 at 6:48am

आदरणीय ज्येष्ठ भ्राता सुरेन्द्र शुक्ल जी.........रचना को पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार........जय श्री राधे.........

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on October 2, 2012 at 8:29pm

प्रिय अजीतेंदु  जी ...महीने  के सक्रिय सदस्य चुने जाने पर आप की लगन और श्रम को सलाम आप को हार्दिक बधाई .. ये हुयी  न बात ..मेंहदी रंग लाती ही रहे 

जय श्री राधे 
भ्रमर ५ 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 30, 2012 at 9:52am

सागर की गहराई में जाकर अंडर वाटर जाकर जो अद्दभुत नज़ारे मिलते हैं उसी तरह मन के सागर की तलहटी में जाकर अद्दभुत   विचार अद्दभुत कल्पनालोक का सामना होता है बहुत गहन प्रस्तुति ...वाह बहुत बधाई आपको कुमार अजीतेंदु जी 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 30, 2012 at 12:45am

ठहराव अल्पकालिक होता है
बहाव ही प्रकृति का मूल है ;
पग-पग पर दृष्टिगोचर होते है उदाहरण
धैर्य एवं संयम के लाभ के ;
गहराइयों में जाकर ही
मिलते हैं धर्म के सीप
मर्यादित आचरण के मोती लिये |

प्रिय अजीतेंदु जी ..बहुत सुन्दर रचना और प्यारा सन्देश उत्साहित करते 

जय श्री राधे अपना स्नेह बनाये रखें 
भ्रमर ५ 

 

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