कभी कभी इस दिल में सिसक उठती थी,
की शायद वो दिन भी आयेंगे जब हम भी अपना घर बनायेंगे !
या फिर यूँ ही किराये के मकान में अपना सारा जीवन बिताएंगे !!
माता-पिता की जिम्मेदारियां इतनी थी की ऐसा ख्वाब भी उन्हें नसीब न था..
कभी हम भी यही सोचा करते थे की क्या हम भी कभी उनका हाथ बटा पाएंगे !!
जिम्मेदारियों के साथ-साथ बढ़ती महंगाई का साया था..
चाहते हुए भी कभी घर का सपना बुनना शायद सपने की परछाई थी !
माँ की बीमारियों के साथ, पढाई का खर्च भी उठाना था ,
शायद यही सबसे बड़ी पिता की कमजोरी थी जिसको सबसे छुपाना था !!
और हम बस यही सोचते रहे की हमें अपना खुद का आशियाना बनाना था,
आज सब कुछ पा लिया हमने लेकिन अब नहीं वो जमाना था !
आज समय किसी के पास नहीं जो रिश्तों का सबसे बड़ा खजाना था !
इससे अच्छा तो बचपन में हमारा वो किराये का आशियाना था !!
रचनाकार-
मुकेश शर्मा, उज्जैन.
Comment
धन्यवाद् सतीश जी !!
धन्यवाद् योगी जी...
हमारी बधाई भी स्वीकार कीजिये ....
जिम्मेदारियों के साथ-साथ बढ़ती महंगाई का साया था..
चाहते हुए भी कभी घर का सपना बुनना शायद सपने की परछाई थी !
माँ की बीमारियों के साथ, पढाई का खर्च भी उठाना था ,
शायद यही सबसे बड़ी पिता की कमजोरी थी जिसको सबसे छुपाना था !!
sundar shabd
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