समय के साथ सब बदलता गया , यादें धुंधली होती चली गयी. वो दिन जब स्कूल जाने की चिंता तो थी ; मगर उसी के साथ बेफिक्र ज़िन्दगी जिसमे न तो घर गृहस्ती की चिंता और न ही काम धंधे की फिक्र थी. ये कहानी राजस्थान के एक ऐसे गरीब ब्राह्मन परिवार के लड़के की है जिसका नाम " रवि " था , मगर जो अपने परिवार में रौशनी नहीं कर सका .माँ बाप ने उसके लिए अपनी सारी जिंदगी यूँ ही गुज़ार दी .. समय बीतता चला गया वो अपनी जिंदगी के २१ साल पूरे कर चुका था और उसे जिस मुकाम पर पहुंचाने का सपना उसके माँ बाप का था वो कभी पूरा न हो सका .. मोहल्ले के आवारा लडको के साथ गलत आदतों ने उसे अपने काबू में कर लिया था , ऐसा लगता था मानो उसे संस्कार ही ऐसे दिए गए हो ..पर कसूर किसी का नहीं था एक " समय " ही ऐसी चीज़ है जिस पर किसी का बस नहीं चलता .
उनके परिवार में उसकी दो बड़ी बहने भी थी " सुरभि " और "रश्मि " वो दोनों इतनी होशियार थी की उन्होंने अपनी पढाई के साथ - २ शिक्षिका की नौकरी करके अपने परिवार को आर्थिक सहारा दिया .जिसकी कोई माँ - बाप उम्मीद भी नहीं करता . वो भी आखिर कब तक करती, क्योंकि लड़कियां तो वैसे भी "पराया धन " होती हैं . एक के बाद एक दोनों का विवाह अच्छे घर में हो गया और वो माँ -बाप को अपने हाल पर छोड़ कर चली गयी ! रवि को तो मानो और आज़ादी मिल गयी थी ..एक घर था वो भी उसने बुरी संगतों के कारण गिरवी रख दिया था ! समय बीतता चला गया और बुरी आदतें बढती चली गयी , शराब पीना ,जुआ खेलना ये सब तो आम हो चुका था .
आखिर एक दिन ऐसा समय आ ही गया जब पूरे परिवार को उस बुरे वक़्त के आगे घुटने टेकना पड़े ..अचानक उसके पिता का हृदयघात से निधन हो गया .. माँ भी कोमा में चली गयी और कोई साथ देने वाला न मिला .. यहाँ तक की रवि को तो शायद अब भी अपनी गलती पर पछतावा नहीं था ..
आज माँ को उसकी बड़ी बेटी ने अपने घर पर रख रखा है जो की हिन्दू धर्म और रीती रिवाजों के अनुसार शायद ही कहीं देखने को मिलता है ..कई बार उन्होंने इस बात को स्वीकारा है की शायद इस नालायक बेटे की जगह एक बेटी और भी हो जाती तो हमें ये दिन देखना नहीं पड़ता. वर्तमान में जहाँ लड़के और लड़की में कोई भेदभाव नहीं माना जाता ..फिर भी अगर किसी घर में बच्चा जन्म लेने वाला होता है तो ज्यादातर लोग लड़के की ही चाहत रखते हैं . .शायद यही दिन देखने के लिए ...
लेखक ,
मुकेश शर्मा , उज्जैन .
Comment
पाण्डेय जी बहुत बहुत धन्यवाद् !
एक सुन्दर कथा.... बधाई
इस प्रस्तुति हेतु बधाई.
बहुत बहुत धन्यवाद् सौरभ जी और गणेश जी मेरी कहानी पसंद करने के लिए और अपने महत्वपूर्ण सुझाव के लिए , अगली बार में कुछ और अच्छा पेश करने की कोशिश करूँगा..
मुकेश शर्मा, उज्जैन.
कहानी ’समय’ में दो धाराएँ हैं एक अग्रगामी तो दूसरी उसके विपरीत. आंचलिक मान्यताओं की धारा को सार्वभौमिक बहाव बना कर प्रस्तुत नहीं किया जाना चहिये. एक कहानीकार के तौर पर आपको दोनों धाराओं को समदिशा करना होगा.
इस प्रस्तुति हेतु बधाई.
लड़का और लड़की, दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, पारिवारिक संस्कार, वातावरण आदि बच्चों को बनाते और बिगाडते हैं, माँ बाप को शर्मिंदगी के आलम में बेटा और बेटी दोनों ही धकेलते हुए दिख जायेंगे, बेटा बेटी में कोई फर्क नहीं है, समाज में अब यह अवधारणा धीरे धीरे पनप रहा है, किन्तु अभी भी बहुत लोग इस बात को समझ नहीं पा रहे,
सुन्दर अभिव्यक्ति है, किन्तु कथा शिल्प पर और मेहनत की जरुरत है | बधाई इस अभिव्यक्ति पर |
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online