For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कवि , उसकी कविता और तुम !

कवि , उसकी कविता  और तुम !
 
हाँ उन कविताओं को भी रचा था उसने उसी वेदना के साथ
जिनपर तुमने तालियाँ नहीं बजायीं
औंर  कई कविताओं को रचकर वह देर तक हँसा था खुद पर
जिन्हें सुनकर तुम झूम उठे थे
जानते हो लिखना और सुनाना दो  अलग अलग विधाएं हैं
और उन सब  पर हावी है रोज़ी रोटी की विधा !
कैसे सुनाता वह समूचे जोश और उत्साह से अपनी कविता
जबकि तुम्हारे  हज़ार फूलों वाले चटख रोशन मंच की  
धवल रेशमी चादर पर तने  चुनौती देते उस माइक के सामने
मंच पर खड़े कवि का पूरा ध्यान था अपनी ज़ुराबों से झांकती उँगलियों पर
वह सोच रहा था जाने आज मिलने वाले पारितोषिक से
कितने दिन सरकेगी गृहस्थी की गाडी !!
वह जिसे सभी कहते लो यह कवि बन गया पत्रकार बन गया
जैसे बन ही नहीं सकता था वह कुछ और साहब या चपरासी या गुंडा मवाली ही
जिसका विवाह पत्र देख वधू पक्ष के रिश्तेदार ने कहा था
आप लोगों को क्या यही मिला कवि लेखक और पत्रकार
वह अक्सर सोचता है  क्यों पढ़ी थीं उसने वह सब किताबें
बोल्शेविक क्रांति  डॉ ज़िवागो  गोर्की  टालस्टाय
और मार्क्स में क्या मिला था उसे
क्या सृजन का वह सूत्र मात्र जो आज बाज़ार में बनकर रह गया है एक उत्पाद भर
महत्वपूर्ण हो गयी है जहां दूकान की साज सज्जा विपणन और पैकेजिंग 
और उसकी फितरत मिज़ाज या नियति कि वह नहीं बन सका 
कविता का कुशल कारोबारी     !!!
 
                                                          - अभिनव अरुण
                                                             {23092012}

Views: 580

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on September 24, 2012 at 3:20pm
हार्दिक आभार श्री राज़ जी रचना पढने और राय व्यक्त करने के लिए | 
Comment by राज़ नवादवी on September 24, 2012 at 1:21pm

काव्य एक प्रसव है और रचनाकार को मातृ धर्म निभाना ही होता है. सुन्दर प्रस्तुति भाई अरुण! 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 24, 2012 at 12:45pm

सिद्धांत और व्यवहार के मध्य लगातार चौड़ी होती खाई को बेहतर स्वर मिला है, बधाई अरुण जी. आपका अतुकांत होना भी चमत्कृत करता है.

शुभेच्छाएँ

Comment by Gul Sarika Thakur on September 23, 2012 at 9:28pm

chintan ke liye uksati huee si is rachana ke liye bahut bahut badhai ... 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 23, 2012 at 7:14pm

 एक मन को झकझोर कर देने वाली प्रस्तुति सच में कविता मनुष्य के ह्रदय से होकर निकलती है 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 23, 2012 at 6:38pm

//जानते हो लिखना और सुनाना दो अलग अलग विधाएं हैं
और उन सब पर हावी है रोज़ी रोटी की विधा !//

सुन्दर और सटीक बात, सही है बगैर रोटी विधा जाने, कोई विधा काम नहीं आती, बहुत ही सुन्दर रचना, बधाई स्वीकार करें आदरणीय अरुण अभिनव जी ||

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 23, 2012 at 3:52pm

सत्य यही है भाई अभिनव अरुण जी, वियोगी होता है कवि,

जो बाहर से सुन्दर दिखेहै वही बिके है, कैसी हो उंदर की छवि
 अच्छी अभियक्ति,बधाई 

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 23, 2012 at 1:46pm

कटु सत्य की सुन्दर अभिव्यक्ति आ. अरुण कुमार जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
yesterday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service