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सब कहते बेकार
 
सब कहते बेकार लिखा
क्या सब कुछ सब बेकार लिखा ?
वोह शे-र वोह ग़ज़ल वोह भजन वोह दोहे
क्या सचमुच किसीको कुछ न जचा ?
कुछ न सीखा कुछ न सोचा
लखते रहे बस लिखते रहे
अब क्या लिखें ओ रामा..?
लिखनें को भी शायद कुछ न बचा
दीपक 'कुल्लुवी' तो पागल है
पागल था पागल ही रहा
सब हँसते देखके पागल को
वह अपने पागलपन पे हँसा
दुनियाँवाले वाह.. वाह.. करते रहे
अपनें हा..हा..करते रहे
सबको शायद सकूँ मिल गया
मुझको इक बन्दर सा नचा
मुझको इक बन्दर सा ------
 
दीपक शर्मा कुल्लुवी
935078399
20 /08 /12 .

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Comment by Deepak Sharma Kuluvi on August 21, 2012 at 2:16pm
रेखा जी अशोक जी शुक्रिया हौंसला अफज़ाई का 

माना वयां ना कर सके 'दर्द' खूबसूरत लफ़्ज़ों में

दर्द-ओ-गम के अफसाने मरी आँखों में ही पढ़ लेते
'कुल्लुवी'
Comment by Rekha Joshi on August 21, 2012 at 11:59am

कहने वाले तो कहते ही रहें गे आदरणीय दीपक जी 

''उन्हें सकूं मिलता है किसी के दिल को जला कर 
हमे सकूं मिलता है खुद अपनी हस्ती को जान कर ''अति सुंदर शब्दों में अपने भावुक मन में उठते जज्बातों  अभिव्यक्ति ,शुभकामनाएं 
Comment by अशोक पुनमिया on August 20, 2012 at 8:45pm
दीपक जी,
सब कहते बेकार.....लेकिन नहीं हुजुर.....'बेकार' में भी कुछ तो अच्छा होता ही है.....और अच्छे में भी कुछ बेकार हो सकता है !आपके भाव जिस भी रूप में प्रकट हुए,अपने अंतर्मन की बात तो कह ही रहे हैं...! 

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