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हे मनुज! तुम दिया बनो
वो दिया...जो जलता है
प्रकाश के लिए, 
नवनिर्माण के लिए,
भटके को राह दिखाने के लिए,
प्रभु की आराधना के लिए,
हे आर्य! आत्मसात कर लो
इसके गुणों को,
अपना लो इसका स्वभाव,
प्रतीक बनो क्रांति के आगमन का,
सूचक हो परिवर्तन का,
मिटा दो अकेले
अंधकार के साम्राज्य को,
फैला सन्देश
तमसो मा ज्योतिर्गमय,
बन चलो
एक किरण आशा की,
जलाओ एक लौ
विश्वास और सजगता की,
पी जाओ विष भय का,
सोख लो सब कालिमा,
अग्रदूत बनो उजाले के,
निभाओ अपना धर्म,
अपने बुझने तक |

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Comment

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Comment by Saurabh Pandey on August 4, 2012 at 1:50pm

वाह !

Comment by Rekha Joshi on August 4, 2012 at 1:49pm
गौरव जी 
मिटा दो अकेले
अंधकार के साम्राज्य को,
फैला सन्देश
तमसो मा ज्योतिर्गमय,,बेहद खूबसूरत रचना ,बधाई 

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