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महल-अटारी
या गाय दुधारी
सम्मोहन है
खूबसूरती का
अहा
ब्यूटीफुल
वाह
काश !!!!!!
फूलते पिचकते सीने
आह
दो कौड़ी के एक कमरे के फ्लैट
ताव देखो महलों वाले
भीरु हो या भोले भाले
काले हो सर्प हो काले
.
.
.
चौंधिया जाती हैं आँखें
एक बत्ती कनेक्शन से
तो फिर उस पीलपाया के सामने
क्या होगा, जहां हजारों बल्ब
एक साथ तड़ित, उजाला दे रहे हैं
बौरा जाओगे भैया
हाई-फाई साउंड में करोगे ताता थैया
बौरा जाओगे भैया
महल देख के
कमरा तलाशो एक कमरा
किराया हो जिसका १००० रुपैया
बौरा जाओगे भैया
.
.
.
.
मत देखो उस ओर
मन नहीं मान रहा न
अच्छा देख लो
घरवाली की याद सताती होगी
सोचो ये न हो तो कितना मुश्किल हो
तुम जैसे लोगों का जीना
और लोग कहते हैं पोस्टर है
पोस्टर है
मन नहीं मान रहा न
ये देखो
नाम क्या है
और काम क्या हो रहा है
नज़र हटा लो अब हो गया हो तो
देख लिया
अरे इनसे अच्छे तो हमारे भील लोग
कम से कम
पत्ता तो सब जगह होता ही है
छी, छी छी
क्या अन्दर जाइएगा अब
देख भी रहे हो
मजा भी ले लिए
और अब ये भी
छी, छी छी
.
.
.
.
डरो नहीं आदमी हैं
दानव नहीं है
गेंडे जैसे हैं
वैसे रखे तो डराने के लिए ही हैं
अब नहीं तो कोई भी हिसाब न मांग लेगा
डरते हैं सब
हाँथ में देखा नहीं
बड़ी वाली बन्दूक है
दो नाली
और इनका होता है भेजा खाली
बकबास करना मत
देना मत कभी गाली
किस्मत की बात है
भगवान् हमें भी थोडा शरीर दे देता
तो मुफ्त में शरीर देख लेते
हाथ में दुनाली पकडे
.
.
.
कितने लोग है
विशाल है महल
वो देखो
उमंग नहीं दिखती
उस गुम्बद में
देखा
सूरज की किरणों की विश्राम स्थली
रिस रही है जिससे ताकत
महल परिचय नहीं देता
स्वयं परिचय होता है
ताकत का
.
.
.
जमीन बुरी है
नहीं अच्छी है
बचपन गुजार दिया माँ की गोद में
अब बड़े हो गए हैं
आसमान पे जायेंगे
कब तक खेलेंगे माँ की गोद में
और कब तक खिलाएगी वो
ले ठूंस ले
आज यही है
निठल्लू
मैंने तो सोच लिया है
रावन बनूँगा
.
.
.
रावन जानते हो न
हाँ हाँ
महल अटारी
 

संदीप पटेल "दीप"

Views: 386

Comment

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Comment by Rekha Joshi on July 26, 2012 at 10:29pm


सदीप जी 
कितने लोग है 
विशाल है महल 
वो देखो 
उमंग नहीं दिखती 
उस गुम्बद में 
देखा 
सूरज की किरणों की विश्राम स्थली 
रिस रही है जिससे ताकत 
महल परिचय नहीं देता 
स्वयं परिचय होता है 
ताकत का ,बेहद खुबसूरत रचना है महल अटारी ,बहुत बहुत बधाई 

Comment by Albela Khatri on July 26, 2012 at 9:41pm

बहुत बारीक काम करते हो भाई  संदीप जी........
__क्या बात है.....
जय हो !

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 26, 2012 at 4:56pm

बचपन गुजार दिया माँ की गोद में 
अब बड़े हो गए हैं 
आसमान पे जायेंगे 
कब तक खेलेंगे माँ की गोद में 
और कब तक खिलाएगी वो 
ले ठूंस ले 
आज यही है 
निठल्लू 

संदीप जी ..कुछ अलग सी रचना बिभिन्न रंग समाज के  दिखे ..चेतावनी जारी हुयी ...सावधानी का संकेत ...भाव भरी रचना अच्छी लगी 

जय श्री राधे 
भ्रमर ५ 

 

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