वो ख़्वाब उज़ागर क्यूँ किये हमने
सौ दर्द ज़िगर को क्यूँ दिए हमने||
जब करनी थी बातें कई हज़ार
वो लब चुपके से क्यूँ सिये हमने||
ख़्वाब बुनते रहे वो ही गलीचा
तलवे ये जख्मी क्यूँ किये हमने ||
ता उम्र करते रहे उन से वफ़ा
ये जफ़ा के घूँट क्यूँ पिए हमने ||
दे के जहान भर की दुआ उनको
मिटा दिए सुख के क्यूँ ठिये हमने
अश्क तो पलकों में ज़ब्त हो जाते
ये सब हथेली पे क्यूँ लिए हमने ||
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Comment
रेखा जी बहुत बहुत हार्दिक आभार
आदरणीया राजेश जी
ता उम्र करते रहे उन से वफ़ा
ये जफ़ा के घूँट क्यूँ पिए हमने ||,बहुत खूब ,प्यार में ऐसा ही होता है ,सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई
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