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मेरी आँखों में जो देखा गया है ... तेरे ही अक़स को पाया गया है ...

मेरी आँखों में जो देखा गया है ...
तेरे ही अक़स को पाया गया है ...

मुझे आइन-ए-तहज़ीब समझा ...
वो शायद  इस लिये शर्मा गया है ...

वही जिसने मुझे दीवाना  समझा ...
जहाने दिल पे मेरे छा गया है ...

निगाहों से न बच पाया मैं उसकी ...
मुझे इस तोवर से ढूंढा  गया है ...

उसे हुस्ने-सरापा कह दिया था ...
उसी दिन से वो बस इतरा गया है ...

ये किसके लम्स का झोंका था आख़िर  ...
मेरे कमरे को जो महका गया है ...

उसी का शुक्रिया उम्रे -रवां तक ...
मोहब्बत से जो दिल पर छा गया है ...

तुम्हारे साथ जो इक -दिन ये गुज़रा ...
शबे -हिजरा मुझे तड़पा गया है ...

कभी आंसू कभी शबनम से क़तरे ...
मेरी आँखों को रोना आ गया है ...

कोई तो बात है "रिज़वान" मुझमे ...
जो मुझको टूट कर चाहा गया है ...


रिज़वान खैराबादी

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Comment

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Comment by Rekha Joshi on July 10, 2012 at 7:13pm

आदरनीय रिजवान जी ,सादर

कभी आंसू कभी शबनम से क़तरे ... 
मेरी आँखों को रोना आ गया है ... ,उम्दा गजल ,बधाई स्वीकार करें 
Comment by Harish Bhatt on July 10, 2012 at 1:11pm

रिजवान जी नमस्‍कार, बहुत शानदार हार्दिक बधाई

Comment by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on July 10, 2012 at 12:50pm

शुक्रिया अलबेला खत्री जी 

Comment by Albela Khatri on July 10, 2012 at 12:42pm

वाह वाह रिजवान खैराबादी साहेब.....

उसे हुस्ने-सरापा कह दिया था ...
उसी दिन से वो बस इतरा गया है ...

ये किसके लम्स का झोंका था आख़िर  ...
मेरे कमरे को जो महका गया है ...

बहुत बढ़िया रचना,,,,,,,,वाह !

Comment by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on July 10, 2012 at 12:36pm

शुक्रिया   राजेश  कुमारी  जी 

 


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Comment by rajesh kumari on July 10, 2012 at 12:33pm

वाह बहुत  सुन्दर ग़ज़ल 

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