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उन गहन अँधेरे कमरों में ,सन्नाटा ही अब रहता है

बहुत सालों पहले की मेरी डायरी के पन्नो पर अंकित कुछ पंक्तियाँ आपके समक्ष रख रहा हु .भावो को समेटने की कोशिश की है इन शब्दों के गुलदस्ते में, पसंद आये तो सूचित करियेगा और मुझे अवगत करायें मेरी त्रुटियों से । आपका अपना सबका छोटा भाई योगेश... 


उन गहन अँधेरे कमरों में ,सन्नाटा ही अब रहता है

मैं दरवाजे खोलू कैसे .तेरी याद का पहरा रहता है

१-एक तेरी यादों के साए उस पर ये रुसवाई है

करे प्रतीक्षा हर पल अब आँखें भी अब धुंधलाई है

व्यथा उमड़ गई आँखों में जब से ली अंगडाई है

क्या बतलाये तुम्हे यहाँ खुद खुद से बड़ी लड़ाई है

.............................................उन गहन अँधेरे कमरों में

तन्हाई में में मन घबराए भीड़ में भे तन्हाई है

आँख में गंगा होंठ पर नगमे क्या खूब किस्मत पाई है

बागों की रौनक को लगी नज़र कली कली यहाँ कुम्हलाई है

कसमे खा कर तोड़ दिया ऐसी भी क्या रुसवाई है !!

.............................................उन गहन अँधेरे कमरों में

ये सब कुछ सुना दियाहै मैंने ,पीर भी ये पराई है

मैं भी जीता हंसकर दो पल कहाँ ये किस्मत पाई है

जब से तुम चले गए घटा यहाँ पर छाई है

मौसम बदले पर हम न बदले,वो सावन की परछाई है

.............................................उन गहन अँधेरे कमरों में

पीर ह्रदय में पड़ी रही ,एक सघन उदासी छाई है

फूल कलि और पात पात सभी यहाँ मुरझाई है

हर हाल में जीना है मुझको क्यों कसम मुझे दिलाई  है 

दर्द तुम्हारा मेरा है, क्यों प्रीत मेरी पराई है !

.............................................उन गहन अँधेरे कमरों में

=:योगेश शिवहरे 'यश"

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