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राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- ६

(आज से उन्नीस वर्ष पूर्व लिखी रचना)

तुम्हें भूल सकता हूँ .......

 

मैं सोचता तो हूँ

परिस्थितियों से हार जाऊँ,

तुम्हें भूलजाऊँ;

 

मैं चाहता तो हूँ

तनावों के असंपादित अध्यायों से

दूर निकल जाऊँ,

कहीं एक शब्द, एक वाक्य बनकर

इस निस्सीम व्योम में

किन्हीं वायव्य माध्यमों से उच्चरित होकर

अपनी अस्मिता की समिधा जलाऊँ;

 

मैं चाहता तो हूँ

कि क्रिया-अनुक्रिया के

अनादिकालजन्य आवर्त्तों से

मन:स्थितियों की प्रसंविदा तोड़ डालूँ

जहाँ, न मन की इच्छाओं का प्रवेश है

न व्यथा, न पश्चाताप का उद्भव

एक ऐसे ही कालबिंदु पे

अपना सत्त्व विसर्जित कर दूँ

 

मैं चाहता तो हूँ

कोई एक निर्जन निविड़ रात

व्यथाओं के शव ढोती

एक निश्शब्द निर्वाक दोपहरी

अथवा, उदासीन मनोभावों सी एकाकी संध्या-

इनकी दीर्घाओं में बैठकर

संकल्पों का काव्य रचूँ

जिसके हर शब्द में

विस्मृति की तंद्रा भर दूँ

 

मैं चाहता तो हूँ

परिवर्तन के नए प्रभात तक

अपने आर्त्त स्वरों का आलाप करूँ

और फिर निद्रालस होकर

स्वप्नों के निलय में

शेष हो जाऊँ

 

मैं चाहता तो बहुत कुछ हूँ.....

अपनी इच्छाओं के पराभाव के दीर्घ इतिहास में

परिस्थितियों के कठोर आघातों से

संकल्प-विकल्प का जो एक क्रम

अब तक अविच्छिन्न बना रहा

यदि कभी उनके प्रदेशों से दूर निकल सकूँ

तो कदाचित्

तुम्हें भूल सकता हूँ ।

 

© राज़ नवादवी

सोशल वर्क हॉस्टल, नई दिल्ली

०८/०८/१९९३ 

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