For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- १२

सबों से दिल की मुश्किलों का सबब क्या कहिए 
मगर जब अपनेही पूछें येसवाल तब क्या कहिए

वक्त क्यूँ ढाता है मासूमों पर गजब क्या कहिए
कहाँ जाती है नेकी -ए-कायनात अब क्या कहिए 

रूठकर खो गई जो अज्दाहामे फिक्रेदौराँ में कभी 
होती है अबभी उन निगाहोंकी तलब क्या कहिए 

बहुत एहतियात से हुस्न की नजाकत संभालिए
रहिए फिक्रमंद कि तबक्या और अबक्या कहिए 

हम तो दिलसे हैं दिहिकान देहातोंमें हैं पले- बढ़े 
शहरके लोगों की चाल ढाल ओ ढब क्या कहिए 

भूख से सताए बच्चे, तगाफुल के मारे बड़े- बूढ़े 
रंगभरी दुनियामें है और क्या अजब क्या कहिए 

लोगोंको देखके फटेहाल रोता है दिल ज़ार-ज़ार 
किस जा बैठा है मेरा मौला मेरा रब क्या कहिए 

पैदाहुए हिंदू परवरिश मुसलमाँ जैसी अपनी राज़ 
अपना दीन -ओ- ईमान-ओ- मजहब क्या कहिए

© राज़ नवादवी 
भोपाल मध्याह्न १२.२८, १९/०६/२०१२ 

नेकी -ए-कायनात- सृष्टि की अच्छाई; अज्दाहामे फिक्रेदौराँ में- संसार के चिंतन की भीड़ में; एहतियात- सावधानी; नजाकत- कोमलता; फिक्रमंद- चिंतनशील; दिहिकान- किसान, उजड्ड, गंवार; तगाफुल- उपेक्षा; परवरिश- लालन-पालन;

Views: 547

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 10:43am

फिर से टंकण की भूल, गूगल की और साधना करनी पड़ेगी- ' पढ़ने के जगह' अशुद्ध है, 'पढ़ने की जगह' पढ़ा जाए. 

Comment by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 10:34am

आदरणीय उमाशंकर जी एवं अरुण कुमार जी, सबसे पहले मैं अपनी गलती दुरुस्त कर लूं- 'आपने पढ़ने के जगह, आपने पढ़ने की' पढ़ा जाए, टंकण की भूल थी.

दूसरी बात- आपके किसी भी शब्द का कुछ भी बुरा नहीं माना है मैनें, भला क्यूँ मानूंगा? आपने इतने प्यार से जो कहा वही मेरे लिए अहम है. कहना चाहूँगा- 'हंस दिए जो वो बेसाख्ता पढ़ कर मेरे अशआर, मतलब से क्या मतलब, जो था मंसूब वो हुआ इज़हार'. बस दिल को इसी की खुशी है.

रही बात एक साथ ग़ज़लों को पोस्ट करने की तो फिर कहना चाहूँगा- 'था कोई बुलबुला बंद किसी बोतल में एक मुद्दत से, वा हुआ जो यकलख्त तो हर सू आबशार हुआ'.  बस, यही जज्बा था किसी बच्चे सा, और कुछ भी नहीं.

अन्य रचनाकारों के बारे में न सोचने की जो मुझसे भूल हुई है, उसपे अगर थोड़ा और प्रकाश डालेंगे तो भविष्य में ऐसी भूल करने की गुस्ताखी नहीं करूँगा. 

आपने  हमारे अशआरों को दाद दी है उसकी कीमत भला कैसे चूका पाउँगा कभी भी. अमूल्य है! आपका, राज़ नवादवी. 

Comment by UMASHANKER MISHRA on June 28, 2012 at 11:33am

आदरणीय राज नवादवी जी हमारे जज्बात को अन्यथा ना लें आपकी सभी गजल उम्दा है

आपने एक साथ इतनी गजलें डाल दी की हमें आपकी कारगुजारी पर हंसी आ गई हुजुर एक एक गजल

को समझने के लिए काफी समय चाहिए अतः आपसे निवेदन है की गजलों को पोस्ट करने में फासला रक्खें

पैदाहुए हिंदू परवरिश मुसलमाँ जैसी अपनी राज़ 
अपना दीन -ओ- ईमान-ओ- मजहब क्या कहिए क्या बात कही है आपकी ये लाइन धर्म निरपेक्षता को बढावा देने वाली है

रचना बेहतरीन है आपके गजलों की प्रस्तुति हमें खूबसूरत हास्य मय लगी थी अतः  क्षमा प्रार्थी है हम

हमरा उद्देश्य केवल यह है की आप अन्य रचनाकारों के बारे में भी सोंचे......

Comment by राज़ नवादवी on June 28, 2012 at 10:26am

धन्यवाद भाई अरुण एवं उमाशंकर जी जो आपने पढाने के ज़हमत उठाई! 

- राज़ नवादवी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on June 27, 2012 at 11:39pm

खूबसूरत हास्य गज़ल

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
1 hour ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
2 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
3 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
3 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"वज़न घट रहा है, मज़ा आ रहा है कतर ले मगर पर कतर धीरे धीरे। आ. भाई तिलकराज जी, बेहतरीन गजल हुई है।…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीया, पूनम मेतिया, अशेष आभार  आपका ! // खँडहर देख लें// आपका अभिप्राय समझ नहीं पाया, मैं !"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय रिचा यादव जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"अति सुंदर ग़ज़ल हुई है। बहुत बहुत बधाई आदरणीय।"
4 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service