निर्मल मन मैला बदन , नन्हे नन्हे हाथ
रोटी का कैसे जतन,समझ ना पाए बात (1)
तरसे एक -एक कौर को ,भूखे कई हजार
गोदामों में सड़ रहे, गेहूं के आबार (2)
शून्य में देखते नयन , पूछ रहे है बात
प्रजा तंत्र के नाम पर,क्यूँ करते हो घात (3)
सीना क्यूँ फटता नहीं, भूखे को बिसराय
हलधर का अपमान कर,धान्य, जल में बहाय (4)
शासन की सौगात हो, या किस्मत की हार
निर्धन को तो झेलनी, ये जीवन की मार (5)
रंक का चूल्हा न जले, ना लकड़ी ना तेल
मंत्रियों तक दौड रही ,सिलेंडरों की रेल (6)
दिन हैं भ्रष्टाचार के,सत्य रहा है काँप
मंहगाई की बीन पे, नाच रहे हैं साँप (7)
बिगड़ी सूरत देश की ,किस के जल से धोय
गंगा भी मैली करी, बचा उपाय न कोय (8)
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Comment
संवेदना, भाव और कहन की दृष्टि से अति समृद्ध छंद प्रयास पर साधुवाद.
आदरणीया, छंद-विधा सम्बन्धी तथ्यों की जानकारी पर भी आप यथोचित समय दें तो आपकी रचनाएँ प्रविष्टि मात्र की संज्ञा न रह जायँ. उच्च कहन से समृद्ध रचनाएँ हर कसौटी और मानकों पर खरी उतरेंगीं. उसपर से प्रस्तुत प्रविष्टि दोहा छंद के सन्निकट है जो ओबिओ का अत्यंत दुलारा छंद है.
सादर
hahaha nahi lungi pradeep ji main bhrashtachar virodhi hoon.
वाह जी वाह गुरु मन्त्र नहीं देंगी,
सिलेडर पर ब्लैक के पैसे लेंगी
हाहाहा प्रदीप कुमार कुशवाह जी भेज रही हूँ ...एनी वे हार्दिक शुक्रिया दोहे आपको पसंद आये
आदरणीय राजेश कुमारी जी , सादर
वास्तविक चित्रण करारा व्यंग
युगलबंदी देख हम हो गए दंग
हम हो गए दंग कैसे सब लिखती हैं
कथा, कविता हो गजल सब जंचती हैं
थोडा सा गुरु मन्त्र हमें भी पिलवा दो
घर में नहीं गैस १ सिलेंडर दिलवा दो
बधाई
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