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ग़ज़ल : कब्र मेरी वो अपनी बताने लगे

जिनको आने में इतने जमाने लगे
कब्र मेरी वो अपनी बताने लगे
 
जाने कब से मैं सोया नहीं चैन से
इस कदर ख्वाब तुम बिन सताने लगे
 
झूठ पर झूठ बोला वो जब ला के हम
आइना आइने को दिखाने लगे
 
है बड़ा पाप पत्थर न मारो कभी
जिनका घर काँच का था, बताने लगे
 
बिन परिश्रम ही जिनको खुदा मिल गया
दौड़कर लो वो मयखाने जाने लगे
 
प्रेम ही जोड़ सकता इन्हें ताउमर
टूट रिश्ते लहू के सिखाने लगे
 
भाग्य ने एक लम्हा दिया प्यार का

जिसको जीने में हमको जमाने लगे

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 16, 2012 at 6:54pm

शुक्रिया अजय जी

Comment by Ajay Singh on June 16, 2012 at 12:58pm

है बड़ा पाप पत्थर न मारो कभी

जिनका घर काँच का था, बताने लगे ,, 
                                                         बहुत खूब , धर्मेन्द्र जी ...
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 16, 2012 at 10:57am

नीलेश जी, संदीप जी, उमाशंकर जी, अलबेला खत्री जी एवं प्रदीप जी ग़ज़ल पसंद करने के लिए आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद।

Comment by Nilansh on June 16, 2012 at 10:07am

bahut sunder ghazal aadarniya dharmendra ji

bahut badhaai

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on June 16, 2012 at 8:21am

waah waah sir ji .................bahut khoob kya baat hai

badhai aapko sir ji

Comment by UMASHANKER MISHRA on June 15, 2012 at 11:37pm
जिनको आने में इतने जमाने लगे
कब्र मेरी वो अपनी बताने लगे
शेर की हर लाइन  दमदार है
शब्द नही है इतने बढिया है आभार आपका जो हमें इतनी सुन्दर रचना दी
Comment by Albela Khatri on June 15, 2012 at 10:28pm

सम्मान्य धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी,
बहुत उम्दा ग़ज़ल कही आपने.............मुबारक हो...........
हर शे'र अपने आप में  एक बात लिए हुए है . ख़ासकर  यहाँ आकर तो मैं  निहाल हो गया  :

 
प्रेम ही जोड़ सकता इन्हें ताउमर
टूट रिश्ते लहू के सिखाने लगे
 
भाग्य ने एक लम्हा दिया प्यार का

जिसको जीने में हमको जमाने लगे

____जय हो जय हो .......सादर अभिनन्दन !

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 15, 2012 at 9:27pm

अंतिम पंक्ति में संसोधन है 

बड़े से बड़े शायर आपके क़दमों में पहुडे हैं

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 15, 2012 at 9:26pm

भाग्य ने एक लम्हा दिया प्यार का

जिसको जीने में हमको जमाने लगे

आदरणीय सिंह साहब जी , सादर 

एक से एक  बढ़ फूल जोड़े हैं

गजलों के सुन्दर रिकार्ड तोड़े हैं

गजलों  के क्यों शेरो के बादशाह हैं

बड़े से बड़े शायर आपके क़दमों में पहुडे हुए हैं 

आदाब.

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