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मुक्तिका: दिल में दूरी... --संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
दिल में दूरी...
संजीव 'सलिल'
*
दिल में दूरी हो मगर हाथ मिलाये रखना.
भूख सहकर भी 'सलिल' साख बचाये रखना..

जहाँ माटी ही न मजबूत मिले छोड़ उसे.
भूल कर भी न वहाँ नीव के पाये रखना..

गैर के डर से न अपनों को कभी बिसराना.
दर पे अपनों के न कभी मुँह को तू बाये रखना..

ज्योति होती है अमर तम ही मरा करता है.
जब भी अँधियारा घिरे आस बचाये रखना..

कोई प्यासा ले बुझा प्यास, मना मत करना.
जूझ पत्थर से सलिल धार बहाये रखना..

********
Acharya Sanjiv verma 'Salil'

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Comment by sanjiv verma 'salil' on May 27, 2012 at 12:15am

बागी जी, आशीष जी, महिमा जी, भ्रमर जी, प्रदीप जी, रेखा जी, हसरत जी, राजेश जी, योगी जी!
आपकी गुणग्राहकता को नमन..


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 24, 2012 at 8:37pm

ज्योति होती है अमर तम ही मरा करता है.
जब भी अँधियारा घिरे आस बचाये रखना..

एक भावप्रधान व अर्थप्रधान ग़ज़ल, बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर .

Comment by आशीष यादव on May 24, 2012 at 11:20am
आदरणीय आचार्य जी आपको पढ़ना हमेशा सुखद अनुभव होता है। ये रचना भी बहुत अच्छी और ज्ञान वर्धक है।
नमन आपको एवँ आपकी लेखनी को
Comment by MAHIMA SHREE on May 23, 2012 at 9:39pm

ज्योति होती है अमर तम ही मरा करता है.
जब भी अँधियारा घिरे आस बचाये रखना..

कोई प्यासा ले बुझा प्यास, मना मत करना.
जूझ पत्थर से सलिल धार बहाये रखना..

आदरणीय सलिल सर ... बहुत ही बढ़िया .. बधाई  स्वीकार करें



Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 22, 2012 at 11:14pm

जहाँ माटी ही न मजबूत मिले छोड़ उसे.
भूल कर भी न वहाँ नीव के पाये रखना..

ज्योति होती है अमर तम ही मरा करता है.
जब भी अँधियारा घिरे आस बचाये रखना..

आदरणीय आचार्य  सलिल जी ..बहुत उपयोगी  और  ..सुन्दर सन्देश देती रचना  ..आभार ....भ्रमर ५ 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 22, 2012 at 5:42pm

आदरणीय  सलिल जी, सादर अभिवादन 

ज्योति होती है अमर तम ही मरा करता है.
जब भी अँधियारा घिरे आस बचाये रखना..

कोई प्यासा ले बुझा प्यास, मना मत करना.
जूझ पत्थर से सलिल धार बहाये रखना..
बहुत अच्छा सदेश , बधाई 
Comment by Rekha Joshi on May 22, 2012 at 4:22pm

ज्योति होती है अमर तम ही मरा करता है.
जब भी अँधियारा घिरे आस बचाये रखना..

bahut achhi rachna ,badhai 




\

Comment by SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" on May 22, 2012 at 3:24pm

wah......wah.......salil ji bahut achchi rachna hai bahut bahut badhai kubool karein


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 22, 2012 at 2:59pm

ज्योति होती है अमर तम ही मरा करता है.
जब भी अँधियारा घिरे आस बचाये रखना..बहुत सुन्दर सलिल जी बहुत सुन्दर भाव हैं इस ग़ज़ल में बहुत बधाई 

Comment by Yogi Saraswat on May 22, 2012 at 2:45pm

दिल में दूरी हो मगर हाथ मिलाये रखना.
भूख सहकर भी 'सलिल' साख बचाये रखना..

जहाँ माटी ही न मजबूत मिले छोड़ उसे.
भूल कर भी न वहाँ नीव के पाये रखना..

लेकिन साब हो तो उल्टा रहा है , यहाँ भरे पेट वाले भी खुद को गिरवी रखने को तैयार हैं ! बेहतरीन ग़ज़ल

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