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लघुकथा :- चिंगारी 

घर से सैकड़ो मील दूर इस अजनबी शहर में सिर्फ दफ्तर के बड़े बाबू शर्मा जी ही थे जिनके साथ मिल बैठ कर कभी कभी अजय अपने दिल की बात साझा कर लिया करता था, मगर कोई दिन ऐसा नहीं होता जिस दिन बड़े बाबू अजय से न पूछते:
"अजय, कोई गर्लफ्रेंड मिली कि नहीं ?
"क्या आप भी बड़े बाबू"
"अरे भाई, इतने बड़े शहर में अकेले रहते हो, वक़्त काटने के लिए कोई गर्लफ्रेंड ही ढूँढ लो, जवान हो खूबसूरत हो, क्या मुश्किल है तुम्हारे लिए? मुझे देखो, तुम से उम्र में कितना बड़ा हूँ लेकिन २-२ गर्ल फ्रेंड पाल रखी हैं"
अजय झेप जाता और बड़े बाबू खिलखिलाकर हँस पड़ते |
लेकिन उस रोज़ बड़े बाबू ने अजय के सदा उदास रहने वाले चेहरे पर एक अजीब सी रौनक देखी, तो पूछ लिया,
"क्या बात है अजय ? आज बहुत खुश दिख रहे हो, लगता है कि आखिर तुम्हें कोई मिल ही गई."
"जी हाँ बड़े बाबू, सही कहा आपने"
"अरे वाह, मुबारक हो, हमें नहीं मिलवाओगे क्या उस से ?"
"मिलवाऊँगा क्यों नहीं ? आखिर आपकी ही प्रेरणा से तो ये संभव हुआ है"
"अच्छा, तो जल्दी से बताओ कौन है, कहाँ रहती है, क्या करती है, कहाँ मिली ?"
"वो बातें बाद में बड़े बाबू, पहले मेरे मोबाइल में उसकी तस्वीर देखो"
अजय ने अपना मोबाइल बड़े बाबू के सामने किया तो उनकी आँखों के सामने अँधेरा सा छा गया तथा वे अवाक और सन्न रह गए, क्योंकि वो तस्वीर उनकी छोटी बेटी की थी |

  • गणेश जी "बागी"

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 20, 2012 at 4:01pm

आदरणीय सौरभ भईया, मुझ सहित अधिकतर ओ बी ओ सदस्य आपकी प्रतिक्रिया के इन्तजार में होते हैं , आपकी प्रतिक्रिया एक तरह से अनुमोदन है, बहुत बहुत आभार आपका आशीर्वाद और स्नेह बनाए रखे |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 20, 2012 at 3:59pm

आदरणीय योगराज सर, आपकी लघुकथाओं को पढ़ पढ़ मैंने लिखना शुरू किया, और जब आपकी सराहना मिलती है तो लगता है कि मेहनत सफल हुई , मैं सदैव आपका आभारी हूँ |

Comment by Rekha Joshi on May 20, 2012 at 10:58am

आदरणीय बागी जी ,बड़े बाबू जैसे लोगों के मुंह पर करारा तमाचा ,अच्छी रचना पर बहुत बहुत बधाई |

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 19, 2012 at 9:13pm

आदरणीय बागी जी , नमस्कार

हमेशा की तरह समाज के दोगलेपन को कटाक्ष करती जोरदार रचना के लिए बहुत-२ बधाई!

मेरी भी यही राय है, हालाँकि शुरुआत में समझ में आने लगी थी!
आखिर हम विकसित हो रहे हैं!!!
Comment by MAHIMA SHREE on May 19, 2012 at 8:40pm

आदरणीय बागी जी , नमस्कार

हमेशा की तरह समाज के दोगलेपन को कटाक्ष करती जोरदार रचना के लिए बहुत-२ बधाई


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 19, 2012 at 7:01pm

आदरणीय योगराज भाई साहब के कहे पर मैं अपनी बधाई तोल रहा हूँ.  वाकई सधा हुआ प्रयास है.

पुनश्च बहुत-बहुत बधाइयाँ.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 19, 2012 at 6:38pm

सुन्दर ओर सशक्त लघुकथा.

शैली शानदार,

शीर्षक जानदार,

अदायगी धारदार,

अंत डंकदार

 बधाई सरकार


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 19, 2012 at 6:11pm

लघु कथा को सराहने और बहुमूल्य आशीर्वाद से नवाजने हेतु आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय प्रदीप सिंह कुशवाहा जी |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 19, 2012 at 6:09pm

लघु कथा स्वीकार करने हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय भावेश राजपाल जी |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 19, 2012 at 6:08pm

आभार आदरणीय योगी सारस्वत जी |

कृपया ध्यान दे...

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