खोल दिए पट श्यामल अभ्रपारों ने
मुक्त का दिए वारि बंधन
नहा गए उन्नत शिखर
धुल गई बदन की मलिनता
दमक उठे हिमगिरी
झूम उठी घाटियाँ
थिरक उठी वादियाँ
लहरा गई नीली चुनरिया
अम्बर की छाती पर|
ठहरी -ठहरी सी तरंगिणी
बह चली द्रुत गति से
बल खाती हुई
गुनगुनाती हुई
पत्थरों के संग
अठखेलियाँ करती हुई|
मैं चुपके से अपनी अंजुरी में
रंगों को समेटे
बाहर आया
पड़ गई मयूर की प्यासी नजर,
अपनी प्रेयसी को रिझाने,
हेतु अपने पंखों
का श्रृंगार करने के लिए,
मुझसे कुछ रंग मांग कर ले गया |
उसका रोम रोम झूम उठा
अपने नृत्य से
सारी प्रकृति को मन मोहित कर दिया
पल्लवों ने
झूम झूम कर करतल ध्वनी की|
शाखाओं ने
एक दूजे को बाहों में लेकर
बधाईयाँ दी
ना जाने कहाँ से
एक छोटी सी चंचल
तितली मेरे रंगों में
अपने नन्हें नन्हें पंख
डुबोकर इतराती इठलाती
एक पुष्प की गोदी में बैठ कर बोली
रंगों का राजा आया है
तुम भी अपना सोलह श्रृंगार करलो,
सारी प्रकृति में बात फ़ैल गई
मैंने अपना बचा रंग सारी
प्रकृति में वितरित कर दिया
और फिर विस्मित आँखों से
धरा के उस आलौकिक
रूप को देखता ही रह गया,
और उस महान चित्रकार को
जिसकी कला में मैंने रंग भरा
नमन करते हुए
चल दिया अपनी राह
फिर से रंग समेटने
और इंतज़ार करने
कि कब कोई मेघ श्रंखला
अपने बंधन खोलेगी
और हिमगिरी
की घाटियाँ मेघ मल्हार
गायेंगी और प्रकृति
नृत्य करेगी |
और मैं मुस्कुराता हुआ
फिर किसी दिशा में
निकल आऊंगा
अपने रंग बिखेरने
चुपके से|
*****
Comment
खोल दिए पट श्यामल अभ्रपारों ने
मुक्त का दिए वारि बंधन
नहा गए उन्नत शिखर
धुल गई बदन की मलिनता
दमक उठे हिमगिरी
अहा! आपकी कविता ने बारिश के लिए मेरे इंतज़ार की कशिश और बढ़ा दी है. पूना बारिश में स्वर्ग की मानिंद सुन्दर हो जाता है .. और आपकी कविता के ही सम दृश्य यहाँ उपस्थित हो उठता है ... सुन्दर शब्दों और भावों से सजी इस कविता के लिए हार्दिक आभार व बधाई आदरेया राजेश कुमारी जी...
सुंदर काव्य-अभिव्यक्ति. बधाई स्वीकारें राजेश कुमारी जी.
बहुत बहुत हार्दिक आभार कुमार गौरव जी |
मैं चुपके से अपनी अंजुरी में
रंगों को समेटे
बाहर आया
पड़ गई मयूर की प्यासी नजर,
अपनी प्रेयसी को रिझाने,
आदरणीया राजेश दी, बड़ी सुन्दर रचना. बधाई.
आपकी प्यारी प्रतिक्रिया भी अपना रंग बिखेर गई महिमा जी
बहुत-बहुत हार्दिक आभार प्राची जी बहुत ख़ुशी मिलती है ,उत्साह वर्धन होता है और लेखनी को बल मिलता है जब अपने काम की कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया प्राप्त होती है|
अविनाश बागडे जी आपको मेरी रचना पसंद आई इसके लिए हर्दय से आभारी हूँ मेरी लेखनी को बल मिला |
मैं चुपके से अपनी अंजुरी में
रंगों को समेटे
बाहर आया
पड़ गई मयूर की प्यासी नजर,
अपनी प्रेयसी को रिझाने,
हेतु अपने पंखों
का श्रृंगार करने के लिए,
मुझसे कुछ रंग मांग कर ले गया |
उसका रोम रोम झूम उठा...WAH! Rajesh kumari ji...kudarat ka itana sunder sargarbhit sateek kavy-rupantaran...wah!wah!
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online