अजीब से दायरे
अनेक बंधन
अनेक विचार
मैंने पाल रखे हैं
अजीब सी मान्यताएं
अनेक नियम
अनेक प्रथाएं
इनसे निकल नहीं पाती
घुमती रहती हूँ उसी में
बाहर जा नहीं पाती
मैंने कही भी नहीं
खुले रखे हैं दरवाजे
डाल रखे हैं दरवाजो पे
बड़े बड़े ताले
खो बैठी हूँ उनकी चाभियाँ
नहीं ढूंढने जाती हूँ उन्हें
सोच रखे हैं कई बहाने
बाहरी हवाएं नहीं आती
मौसम भी नहीं बदलते
सूरज की किरणें भी
लौट जाती है टकराकर
दो पल खुश हो जाती हूँ
अपने इंतजामात पर
पर अगले पल ही छा जाता है
घनघोर अँधेरा
मुश्किल होता है
ये जानना
दिन है या रात हो गयी है
सच है या
है कोई मायाजाल
Comment
अच्छी रचना है | यह तो मानव स्वाभाव है,
मानव कुच्छ धारणाए मन में रखता है, उनसे वह
बहार नहीं निकल पाता, वर्ना वह इन्सान से महान,
महान से देव तुल्य बन जावे | इस आपने अपने भावो
से यथार्थ चित्रित किया है | सुंदर चित्र की लिए बधाई |
सुन्दर
अपनी सी लगती कविता
बधाई स्वीकारें ...
हर किसी के पास होता है
अपना एक माया जाल
हर कोई बनाता है
अपना एक संसार
जिसकी जितनी सोच होती है
उसका संसार भी उतना ही बड़ा होता है
मेरा संसार मुझे छोटा लगता है
बहुत छोटा
काश मैं कुछ नया सोच सकूं ...
जो बड़ा हो ...
स्नेही महिमा , सादर
बहुत- बहुत धन्यवाद ! अब मेरी टिप्पणिया हिंदी में ही होंगी !
भावेश जी नमस्कार , आपका स्वागत है , आपने सराहा , उत्साहवर्धन किया , आपका ह्रदय से धन्यवाद
(जहा पे सारे obo के नियम लिखे हुए है ठीक उसके निचे आपको हिंदी में लिखने का लिंक दिया हुआ लिखा हुआ है देवनागरी (हिंदी ) टाइप करने हेतु यंहा क्लिक करे उसे क्लिक करते ही नया पेज विंडो ओपन होगा जहा आप हिंदी में लिख कर फिर कापी कर जहा पेस्ट करना है कर सकते है )
आशीष जी नमस्कार , आपका ह्रदय से धन्यवाद....
Respected Mahima shree Ji , Beautifully expressed boundations created by self.
Heartiest Greetings and Regards.
I am a new member and still trying to understand how to convert my comments in Hindi.
Can any one help me in this regard.
सुन्दर रचना। भावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति।
बधाई
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