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दास्तान शर्मा परिवार की!

शर्मा जी, आजकल बड़े उद्विग्न से दिखने लगे हैं! ....वैसे वे हमेशा शांतचित्त रहते, किसी से भी मुस्कुराकर मिलते और जो भी उनके पास आता, उनसे जो मदद हो सकता था, अवश्य करते.
पर, आज कल दफ्तर में काम का अत्यधिक बोझ, बॉस का दबाव और बीच बीच में झिड़की, सहकर्मी की ब्यंग्यबान, बाजार की महंगाई, सीमित वेतन में बच्चों की पढ़ाई लिखाई, उनकी आकाँक्षाओं की पूर्ति, पत्नी के अरमान.... सबकुछ सीमित वेतन में कैसे पूरा करें....... वेतन समझौता भी एक साल से बकाया है. अभी तक कोई सुगबुगाहट नहीं सुनाई पड़ रही है. हर प्रकार का ऋण वे ले चुके है. उनकी किश्त में ही तो आधा वेतन निकल जाता है. इन्ही सब कारणों से थोडा परेशान और चिडचिड़े हो गए हैं... पहले दोस्तों के साथ क्रिकेट या राजनीति की चर्चा में घंटों समय पार कर देते थे पर आजकल किसी से मिलना जुलना भी कम कर दिए हैं ... आखिर इन शिष्टाचारों में भी तो रुपये लगते है. घर आए मेहमान का स्वागत तो मुस्कुराकर करते हैं और उपरी मन से ही सही, खूब आव भगत करते हैं पर उनके जाने के बाद ... 'गरीबी में आंटा गीला' कहने से नहीं चूकते!
मन का भड़ास किस पर निकालते - पत्नी बेचारी तो सहधर्मिणी होती है! .... दफ्तर से आने के बाद एक गिलास पानी और चाय बिस्कुट से स्वागत करती है. यह प्रतिदिन का नियम है .. पर उस दिन न जाने क्या हुआ -- कहने लगे चाय में इतनी चीनी मत डाला करो, अब हम लोगों का उम्र भी ज्यादा चीनी खाने का नहीं रह गया है.. मिसेज शर्मा चौंक गयी .. चीनी अलग से डालकर चाय सुडकने वाले शर्मा जी को आज चीनी कड़वी लगने लगी!  बोली - "चीनी ज्यादा कहाँ है उतनी ही तो डाली हूँ, जितनी हमेशा डालती हूँ". ..  "तुम्हे पता नहीं है न, चीनी क्या रेट में मिल रहा है? और कल से बिस्कुट की जगह भुना हुआ चना देना. उससे सेहत भी ठीक रहती है." शर्मा जी समझाते हुए बोले. शर्माइन शर्मा जी के बात को भांप गयी, बिस्कुट उठाकर ले गयी और अन्दर से भूना हुआ चना ले आयी. अब शर्मा जी के चेहरे पर मुस्कराहट थी -" देशी चीज की बात ही कुछ और है ये अंग्रेज लोग हम लोगों को चाय बिस्कुट का आदत लगाकर चले गए!"
खाना खाने बैठे तो पता नहीं किस चीज में उन्हें नमक थोड़ा ज्यादा लगा -- "कहने लगे नमक अब और घर में बचा है या नहीं?" शर्माइन  बेचारी घबरा गयी तुरंत दही ले आयी और बोली जिसमे नमक ज्यादा है, दही डाल कर खा लीजिये ज्यादा नहीं लगेगा!"  ... शर्माजी भुनभुनाते हुए किसी तरह खाना खा लिए!
बातें एक दिन की हो तो ठीक है, पर यह सिलसिला चलने लगा. उन्हें हर चीज में फिजूलखर्ची दिखने लगी बच्चे मोबाइल पर ज्यादा देर बात करते हैं, तुम पर ही गए हैं! तुम भी तो माँ या बहन से बतियाने लगती हो तो आधा घंटा में भी बात पूरी नहीं होती. अब्जी आंटे से लेकर अड़ोस पड़ोस का भी हाल चाल पूछ लोगी.
पत्नियाँ तो प्रेमचंद के उपन्यास से ही निकल कर आती हैं भला मायके की शिकायत कैसे बर्दास्त कर लेंगी? उन्हें जो कहना है कह लीजिये. उसकी माँ या मैके तक मत जाइये. इन्ही सब छोटी-छोटी बातों पर कभी-कभी बात बढ़ जाती और तू-तू, मैं-मैं हो जाती .. बच्चे बड़े हो रहे हैं...... वे भी सब समझने लगे हैं!
एक दिन शर्मा जी का लड़का पप्पू पापा से बोला - "पापा अपना मोबाइल दीजिये तो!"  शर्मा जी- "क्यों तुम्हारा बैलेंस ख़तम हो गया!"  पप्पू - "नही पापा आप दीजिये तो सही. ...खैर शर्मा जी बच्चे पर अपना गुस्सा कम ही निकालते थे.  पॉकेट से मोबाइल निकालकर दे दिया. थोड़ी देर बाद पप्पू आया और earphone  का प्लग शर्माजी के कान में लगा दिया - शर्मा जी सुनने लगे - "श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधार. बरनऊ रघुबर बिमल जस जो दायक फल चार"....... इस हनुमान चालीसा से लेकर और भी अच्छे भजन और पुराने मधुर फ़िल्मी गीत जो शर्मा जी को पसंद थे, सब उनके कानों के रास्ते उनके मनोमस्तिष्क को गुदगुदाने लगे. अब तो शर्मा जी टी वी को बंदकर अपने मोबाइल फोन में ही गाना और भजन सुनने लगे और थोड़ा शांत से दिखने लगे! टी वी भी तो दिनभर ऊटपटांग ख़बरें चलाता रहता है......
अब आगे का हाल सुनिए ...
शर्मा जी का चिरचिरापन अब कम हो चला था, पर उधर शर्माइन इस परिवर्तन से खुश नहीं थी. अगर वह शर्मा जी को कुछ कहना चाहती तो शर्मा जी एक दो बार में तो सुनते ही नहीं फिर कान से प्लग निकाल कर कहते हाँ बताओ तो क्या कह रही थी... "सब्जी घर में नहीं है, आटा भी आज भर का ही है. बाजार नहीं जायेंगे क्या?" .... शर्मा जी आज्ञाकारी पति की भांति थैला उठाये बाजार चल देते और आवश्यकतानुसार सामग्री लाकर हर चीज का दाम भी बता देते, जिसका अभिप्राय यही होता था कि दाम बढ़ रहे हैं, हिशाब से इस्तेमाल करो.......
एक दिन सन्डे को शर्माइन जी तैयार हुई बाजार जाने को. कुछ कपड़े एवं अन्य आवश्यक सामान लेना था. शर्मा जी जल्दी तैयार होकर बैठकर गाना सुनने लगे और उधर शर्माइन अपनी जूड़ा और साड़ी ठीक करने में लगी हुई थी. खैर दोनों घर से बाहर निकले और स्कूटर को बाहर निकाला, जो एक सप्ताह से इन्तजार कर रहा था कि उसे कोई चलाये तो सही. शर्मा जी ने एक 'किक' दो 'किक' और फिर कई 'किक' मारे, थोड़ा झुकाया भी और बजरंगबली का नाम लेकर पुन: 'किक' मारा, पर स्कूटर को नहीं स्टार्ट होना था, सो नहीं हुआ. शर्मा जी बोले- "चलो ऑटो से चलते हैं" ....पर शर्माइन जी को गुस्सा आ गया - "कब से कह रहे हैं, इस पुराने स्कूटर को बेचकर नया बाइक ले लो, पर आपको तो पुरानी चीज ही पसंद है..... अब हम कही नहीं जायेंगे.
गुस्से में आकर घर में बैठ गयी. अपने विभिन्न पड़ोसियों का गुणगान करती हुई शर्मा जी को कोसने लगी. शर्मा जी को दुबारा हिम्मत न हुई उसे मनाने की. शर्मा जी की बेटी पिंकी सारी बातों को देख सुन रही थी..... मम्मी को अपने पास ले गयी - "मम्मी अपना मोबाइल देना तो!" .. उसने भी वही किया जो पप्पू ने किया था. पिंकी भी मम्मी का पसंद जानती थी. उसने संतोषी माता की आरती से लेकर, हवा में उड़ता जाय, मोरा लाल दुपट्टा ..  मोरा पिया गए रंगून .. आदि गाने मम्मी के मोबाइल में डाऊनलोड कर दिए और मम्मी को सुनाने लगी. अब मम्मी के चेहरे पर मुस्कान लौट आयी थी!
अब तो शर्माइन जी रोटी बनाते बनाते भी सुनती और साथ में गाती - मैं तो आरती उतारूं रे संतोषी माता की ... या मोरे पिया गए रंगून वहां से किया है टेलीफून......
ठीक ही तो कहा है - 
In sweet music is such art,
Killing care and grief of heart
Fall asleep, or hearing, die.

- William Shakespeare: Henry VIII, Act III —

Music is known to relax and to help in stress relief. In the right manner, music can bring lightness into a serious situation.

अर्थात मधुर संगीत हमारे मानसिक तनाव को दूर करने का सबसे उपयुक्त और आसान उपाय है.

मधुर संगीत, ईश्वर का ध्यान, भजन का गान, हंसी-ठिठोली, आदि हमारे प्रतिदिन के तनाव को दूर करने में बहुत ही कारगर है. इसे अपनाकर देखें!

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Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 5, 2012 at 8:18am
आदरणीय श्री सौरभ पाण्डेय जी, सादर अभिवादन!
आपकी विस्तृत और ज्ञानवर्धक प्रतिक्रिया से मैं तो धन्य हो गया! मैंने तो सिर्फ अनुभव साझा करने की कोशिश की थी. आपने उसे इतना सम्मान और मुझे ज्ञान दिया उसके लिए मैं आपका आभारी हूँ!

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 5, 2012 at 7:16am

भाई जवाहर लाल जी, आपने दिल की बात कितने रोचक तरीके से की है ! वाह ! अब ये न कहूँगा कि संगीत पर कहाँ-कहाँ क्या प्रयोग हुए या सुननेवालों को क्या-क्या लाभ हुए या प्रतीत हुए, लेकिन नादब्रह्म को इंगित करता संगीत प्रकृति के प्रत्येक अवयव की नुमाइंदग़ी करता है. जहाँ विचलन है वहीं तरंग है. जहाँ तरंग है वहीं ध्वनि है. जहाँ ध्वनि है वहीं स्वर है. जहाँ स्वर है वहीं साधना है. जहाँ साधना है वहीं अनुशासन है. जहाँ अनुशासन है वहीं तो मनःप्रसूत संगीत-लहरियाँ है !  आपकी भी बात इस तथ्य को रेखांकित करती है कि डिस्कार्ड को कॉनकोर्ड ही साधता है. और जो कॉनकोर्ड है वही तो संगीत है !  मानस की उद्विग्नता को सधी हुई स्वरावृति कितना सुकून देती है, यह नई बात नहीं. 

आपके इस रोचक आलेख के लिये आपका हार्दिक धन्यवाद और हृदय से बधाइयाँ.

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 5, 2012 at 6:53am
आदरणीय रीता जी, सादर अभिवादन!
आपका आशीर्वाद मेरे लिए अमृत के सामान है! सादर आभार! 
Comment by Rita Singh 'Sarjana" on April 4, 2012 at 7:01pm

jawahar ji namaskar sangit se jivan me anand bhar jata hain jisse tanao dur ho jata hain ,main bhi yahi karti hun 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 3, 2012 at 8:55pm

आदरनीय संदीप  जी, सादर अभिवादन! आपका विशेष अनुग्रह है मुझपर.  आपके अनुभव हमसे ज्यादा हैं. वैसे मैंने यह लेख भी अनुभव के आधार पर ही लिखा है. आपकी रूचि भी संगीत में हैं जानकर प्रसन्नता हुई. आपके गजल आपकी रूचि को भी जाहिर करते हैं, उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया के लिए आभार! ऐसे ही आशीर्वाद देते रहें!

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 3, 2012 at 8:51pm

श्रद्धेय श्री कुशवाहा  जी, सादर अभिवादन! आपका विशेष अनुग्रह है मुझपर. आपकी ईशपुत्री मेरी  आदरणीय बहना हैं!   आपके अनुभव हमसे ज्यादा हैं. मैंने यह लेख भी अनुभव के आधार पर ही लिखा है.उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया के लिए आभार!ऐसे ही आशीर्वाद देते रहें!

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 3, 2012 at 8:44pm

आदरणीय मीनू  जी, सादर अभिवादन! आपका और हम सबका अनुभव यही कहता है कि बड़े से बड़ा तनाव भी संगीत से दूर हो जाता है!उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया के लिए आभार!

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 3, 2012 at 8:42pm

आदरणीय राजेश कुमारी जी, सादर अभिवादन!

यह तो १००% सही है कि भूखे भजन न होही गोपाला! पर पेट भरा होने के बाद दिल और मनोमस्तिष्क को जो चहिये वह मधुर संगीत दे सकता है यह तो आप मानेंगी ही!प्रतिक्रिया के लिए आभार!

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 3, 2012 at 8:37pm
श्रद्धेय शाही साहब, सादर अभिवादन! आपके एक एक शब्द और मेरे शहर के बीच का वातावरण -क्या सम्मोहन बाँध दिया आपने कि मेरा  दिल तो बल्लियों उछलने लगा! 
अभी हाल में मैं पटना गया था, अखंड हरिकीर्तन में भाग लेने. आपको मैं क्या बताऊँ कि मैं भी उस मंडली में शामिल होकर झाल बजाते हुए झूमने लगा! यह आपके द्वारा दिए गए उदाहरण का प्रत्यक्ष प्रमाण है! अब बात यही है कि जिस ज़माने के हमलोग हैं, हमें तो वही अच्छा लगता है, पर आज के नौजवानों  को भी लताजी की आवाज वैसी ही भाती  है, तभी तो उन्होंने सचिन के सम्मान में गाया था 'तू जहाँ जहाँ चलेगा, मेरा साया साथ होगा!!!' आपकी विस्तृत और समीक्षात्मक  प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभार!
Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 3, 2012 at 2:19pm

संगीत की क्षमताएं असीमित है जवाहर भाई| मुझे ख़ुशी है कि आपने मेरे पसंदीदा विषय को लेखन के लिए चुना और बहुत ही सार्थक विचार प्रकट किये| नीचे आदरणीय शाही जी ने भी बहुत ही सामयिक और उचित विचार रखे हैं| आप दोनों को ही बधाई|

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