कवि-राज बुन्देली,,,,,,,
Comment
आप सभी को प्रणाम,,,,,,,,,,,,
जिसकी तारीफ़ में, सुनाये ये शेर,
उसी ने कहा "राज" बड़े खराब हो ॥.......... अय -हय .. क्या महीनी निखर के आयी है !!. बहुत खूब !
इसके अलावे इस शे’र ने भी प्रभावित किया है -
हसीं का कतरा तलाश रहे हैं लोग,
आप तो लबलबाये हुये तालाब हो ..
अंदाज़ अच्छा लगा है.
वैसे एक सुझाव है, हम कास्ट-कलर-क्रीड को बचा कर कहा करें. हँसने-मुस्कुराने के क्रम में हम उन आयामों को न छुआ करें जिनपर एक व्यक्ति के तौर पर उन इंगितों का बस नहीं होता.
वाह वाह मजाहिया ग़ज़ल का उत्कृष्ट नमूना , सभी शेर बड़े ही अच्छे निकाले है इस कामयाब प्रस्तुति पर दाद कुबूल करे |
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