For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पिटवा कर छोड़ा

प्रो. सरन घई

 

सामने मेरे घर के महल बना कर छोड़ा,

मेरे हिस्से का भी सूरज खा कर छोड़ा।

बहुत पुकारा मैनें मत छीनो मेरा हक,

मगर जालिमों ने मेरा हक खा कर छोड़ा।

 

सब को धूप, हवा सबको, सबही को पानी,

इसी आस को लिये मर गई बूढ़ी नानी,

फटे चीथड़ों में इक घर में देख जवानी,

फिरसे इक अबला को दाग लगाकर छोड़ा।

 

मचा गुंडई का डंका यों मेरे शहर में,

फ़र्क न बचा कज़ा या दोजख या कि क़हर में,

बस थोड़ा जो मांस बचा था मेरे बदन पर,

कुत्तों जैसे नोच-नोच कर खाकर छोड़ा।

 

ये किस्सा सुनिये, ये बिलकुल नया-नया है,

मेरे चौकीदार ने मुझको लूट लिया है,

बचाखुचा जो माल बचा था मेरी जेब में,

’सरन’ उसे भी थानेदार ने खाकर छोड़ा।

 

 

सुना था मेरे शहर में इक नेता आया है,

धन-दौलत, खाना-कपड़ा, सब कुछ लाया है,

दिया कुछ नहीं, केवल भाषण देकर लगा जो चलने,

हमने भी उसको खासा पिटवाकर छोड़ा।

Views: 494

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Kavita Verma on February 9, 2012 at 10:56pm

bahut khoob ...

Comment by Prof. Saran Ghai on February 5, 2012 at 8:59pm

राज बुंदेली साहब

सहृदय पाठकों से है कविता जगत आबाद,

कैविता की प्रशंसा के लिये अनेकों धन्यवाद।

- प्रो. सरन घई

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on February 5, 2012 at 1:54pm

बहुत खूब,,,,,,,,,,,,,,,,,,

Comment by विनोद अनुज on February 4, 2012 at 11:23am

"कूछ लोग मेरे हिस्सेका सूरज भी खा गए" सायद जावेद अख्तर साहब ने लिखा था......


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 29, 2012 at 10:42pm

ये क्या है ???

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
15 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service