For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक रचना: कम हैं... --संजीव 'सलिल'

एक रचना:
कम हैं...
--संजीव 'सलिल'
*
जितने रिश्ते बनते  कम हैं...

अनगिनती रिश्ते दुनिया में
बनते और बिगड़ते रहते.
कुछ मिल एकाकार हुए तो
कुछ अनजान अकड़ते रहते.
लेकिन सारे के सारे ही
लगे मित्रता के हामी हैं.
कुछ गुमनामी के मारे हैं,
कई प्रतिष्ठित हैं, नामी हैं.
कोई दूर से आँख तरेरे
निकट किसी की ऑंखें नम हैं
जितने रिश्ते बनते  कम हैं...

हमराही हमसाथी बनते
मैत्री का पथ अजब-अनोखा
कोई न देता-पाता धोखा
हर रिश्ता लगता है चोखा.
खलिश नहीं नासूर हो सकी
पल में शिकवे दूर हुए हैं.
शब्द-भाव के अनुबंधों से
दूर रहे जो सूर हुए हैं.
मैं-तुम के बंधन को तोड़े
जाग्रत होता रिश्ता 'हम' हैं
जितने रिश्ते बनते  कम हैं...

हम सब एक दूजे के पूरक
लगते हैं लेकिन प्रतिद्वंदी.
उड़ते हैं उन्मुक्त गगन में
लगते कभी दुराग्रह-बंदी.
कौन रहा कब एकाकी है?
मन से मन के तार जुड़े हैं.
सत्य यही है अपने घुटने
'सलिल' पेट की ओर मुड़े हैं.
रिश्तों के दीपक के नीचे
अजनबियत के कुछ तम-गम हैं.
जितने रिश्ते बनते  कम हैं...
  *
Acharya Sanjiv Salil

Views: 377

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by sanjiv verma 'salil' on October 2, 2011 at 6:45pm

बागी जी, अम्बरीश जी, सौरभ जी, सिया जी. आपकी गुणग्राहकता को सादर नमन.

Comment by siyasachdev on October 2, 2011 at 4:57pm

behed khoobsurat shabdo se saji hui behtareen rachna


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 2, 2011 at 12:09pm

जिस शांत बहाव से, आचार्यवर, संबंधों की मधुरता और उसके हिलोड़ों को आपने स्वर दिया है उसपर कुछ कहना रचना-स्वर की आवृति को नम करना होगा.  इस कविता पर मेरी सादर बधाइयाँ स्वीकारें.

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 2, 2011 at 11:49am

//हम सब एक दूजे के पूरक
लगते हैं लेकिन प्रतिद्वंदी.
उड़ते हैं उन्मुक्त गगन में
लगते कभी दुराग्रह-बंदी.
कौन रहा कब एकाकी है?
मन से मन के तार जुड़े हैं.
सत्य यही है अपने घुटने
'सलिल' पेट की ओर मुड़े हैं.
रिश्तों के दीपक के नीचे
अजनबियत के कुछ तम-गम हैं.//

आदरणीय आचार्य जी! इस रचना के माध्यम से आज के दौर के रिश्तों की बहुत ही यथार्थपरक व्याख्या की है आपने! इस हेतु कृपया हार्दिक बधाई स्वीकार करें ! सादर:


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 2, 2011 at 11:03am

जितने रिश्ते बनते  कम हैं.....

 

आचार्य जी, रिश्तों की व्याख्या बहुत ही खूबसूरती से किया है आपने, मुझे तो लगता है कि इस विषय पर जितना लिखा जाय वही कम है, एक खुबसूरत गीत का रसास्वादन सुबह सुबह मिला, आभार आपका | 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
12 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
12 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
15 hours ago
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
15 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
15 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी, बहुत धन्यवाद"
15 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी सादर नमस्कार। हौसला बढ़ाने हेतु आपका बहुत बहुत शुक्रियः"
15 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service