(१)
जब आए - तो रस बरसाए
न आए - तो बड़ा सताए
कोई न ऐसा मनभावन
ऐ सखी साजन?? न सखी सावन ।
(२)
मोरे पास - तो करे मगन
दूजे के संग - देत जलन
न जग मे कोई वाके जैसा
ऐ सखी साजन?? न सखी पैसा |
(३)
हमरे जीवन कै आधार
वो ही तो सगरा संसार
बड़ा सोच के रचिन रचैया
ऐ सखी साजन?? न सखी मैया
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया गुरु जी ....आपके मार्गदर्शन से ही यह संभव हुआ है....
यूँ तो आदत न थी कभी कह कर मुकरने की,
पर जाने क्यूँ आज कल ये भी भाने लगा है
टिवीटर, फेसबुक, ऑर्कुट चला के देखे है सब
पर ओ बी ओ पर ज्यादा मज़ा आने लगा है |
tino kahmukariyan sundar hai. mujhe dusri bahut sahi aur achchhi lagi. tisri wali bhi sundar lgi.
वाह वाह वाह भाई विक्रम श्रीवास्तव जी वाह ! कहमुकरी काव्य शिल्प को आपने न केवल बहुत अच्छे से समझा ही है बल्कि बहुत सुंदर रचनाएँ भी रच डालीं ! आपको इस विधा पर इतना सुंदर कहते हुए देख जितनी प्रसन्नता मुझे हुई है मैं शब्दों में ब्यान नहीं कर सकता ! तीनो कि तीनो कहमुकरियाँ कहन और शिल्प की द्रष्टि से अति उत्तम हैं ! कह कर मुकर जाना ही इस विधा की विशेषता है जिसका बखूबी निर्वहन हुआ है - आपको बहुत बहुत बधाई !
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