For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मन को मनाने के अंदाज निराले है

 

बस एक छोटी सी कोशिश है लिखने की...

 

मन को मनाने के अंदाज निराले है

हुए नही वो हम ही उसके हवाले हैं

 

उसने कसम दी तो न पी अभी तक

हाथ में पकड़े लो खाली प्याले है

 

दिल की बात जुबां पर लाये भी कैसे

ये भीड़ नही बस उसके घरवाले हैं

 

बात छोटी सी भी वो समझे नही

चुप रहेंगे भला जो कहने वाले हैं

 

इन्तजार की भी होती है हद दोस्तों

रूक न पायेंगे हम जो मतवाले हैं

 

शानू

Views: 377

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Kailash C Sharma on September 20, 2011 at 7:30pm

उसने कसम दी तो न पी अभी तक

हाथ में पकड़े लो खाली प्याले है

 

...बहुत ख़ूबसूरत गज़ल...

 

Comment by DR SHRI KRISHAN NARANG on September 14, 2011 at 2:37pm

Sunitaji, aap ki yeh likhne ki koshish bahut kamyaab huyi hai. Bhagwaan aap ki kalam ko aur taazagi aur taqat de.  Bahut bahut badhai.

Dr Shri Krishan Narang

Comment by सुनीता शानू on September 13, 2011 at 4:06pm

शुक्रिया वसुधा जी पसंद करने के लिये :)

Comment by सुनीता शानू on September 13, 2011 at 4:05pm

आदरणीय दुष्यन्त जी धन्यवाद।

Comment by सुनीता शानू on September 13, 2011 at 4:05pm

* माफ़ कीजियेगा विश्लेषण गलत लिख बैठी थी।

Comment by सुनीता शानू on September 13, 2011 at 4:04pm

आदरणीय गणेश जी, नमस्कार। मैने सोचा भी नही था आप इस कदर मेरी रचना को पढ़ कर उसका विष्लेशण करेंगे। सच पूछिये तो बहुत अच्छा लगा साफ़ दिल से आपने जो कुछ भी लिखा। यही सच है मुझे गज़ल कहना नही आता मात्र कोशिश है।

बात छोटी सी कि उसे समझ नही

चुप रहेंगे भला जो कहने वाले हैं// आपने पूछा...इस शेर से मेरा आशय मै जो लिखना चाह रही थी शायद लिख नही पाई हूँ कृपया आप मदद करें( बात छोटी सी कि उसे समझ नही यानि की इक जरा सी बात की हम उसे चाहते है वो समझ नही पाते तो भला हम जो उसे चाहते हैं चुप रह पायेंगे। :) अब भाव मैने बता दिये इन्हें आकार आप दीजिये ताकि मेरी रचना पूरी हो सके।

सादर 

Comment by दुष्यंत सेवक on September 13, 2011 at 11:31am

sundar panktiyan shanu ji....


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 13, 2011 at 10:07am

//मन को मनाने के अंदाज निराले है

हुए नही वो हम ही उसके हवाले हैं//

वाह वाह, यक़ीनन अंदाज निराले है, खुबसूरत मतला |

 

//उसने कसम दी तो न पी अभी तक

हाथ में पकड़े लो खाली प्याले है//

हा हा हा हा, खाली प्याले इस उम्मीद से की शायद वो तरस खाले और कह दे कि पी ले जालिम थोड़ी सी :-)))))))

 

//दिल की बात जुबां पर लाये भी कैसे

ये भीड़ नही बस उसके घरवाले हैं//

वाह भाई वाह, भीड़ में घरवाले पहचान में आ गए, प्यार अंधा अभी तक नहीं हुआ या प्यार ही ना हुआ, बहुत ही खुबसूरत शे'र |

 

//बात छोटी सी कि उसे समझ नही

चुप रहेंगे भला जो कहने वाले हैं//

यह शे'र कुछ खास अर्थ देता हुआ नहीं लगा, या शायरा अभिव्यक्त नहीं कर सकी |

 

//इन्तजार की भी होती है हद दोस्तों

रूक न पायेंगे हम जो मतवाले हैं//

सही बात, सही बात, इन्तजार इन्तजार इन्तजार ......आखिर कब तक ? खुबसूरत शे'र |

शानू जी बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल प्रस्तुत किया है आपने, दाद कुबूल करे |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. रचना बहन, तर की बंदिश नहीं हो रही। एक तर और दूसरा थर है।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए बहुत बहुत बधाई।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"कर्म किस्मत का भले खोद के बंजर निकला पर वही दुख का ही भण्डार भयंकर निकला।१। * बह गयी मन से गिले…"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय चेतन जी नमस्कार बहुत अच्छा प्रयास तहरी ग़ज़ल का किया आपने बधाई स्वीकार कीजिये अमित जी की…"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी नमस्कार बहुत ही ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये एक से एक हुए सभी अशआर और गिरह…"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय अमित जी नमस्कार बेहतरीन ग़ज़ल हुई आपकी बधाई स्वीकार कीजिये मक़्ता गिरह ख़ूब, हर शेर क़ाबिले तारीफ़…"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"2122 1122 1122 22/112 घर से मेले के लिए कौन यूँ सजकर निकलाअपनी चुन्नी में लिए सैकड़ों अख़्तर निकला…"
3 hours ago
Rachna Bhatia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, तरही ग़ज़ल कहने के लिए हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
Rachna Bhatia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"वाह वाह, आदरणीय संजय शुक्ला जी लाजवाब ग़ज़ल कही आपने। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
Rachna Bhatia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय यूफोनिक अमित जी, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए हार्दिक बधाई। आदरणीय, केवल संज्ञान…"
3 hours ago
Rachna Bhatia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"2122 1122 1122 22 /112 1 जिसकी क़िस्मत में शनि राहु का चक्कर निकला  उसके अल्फ़ाज़ में शर…"
3 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिय: आदरणीय नादिर ख़ान भाई"
3 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service