For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्यार की बाँसुरी

 

तुम्हारे प्यार की फुहार से 

इस कदर भीगा तन-मन, कि, 

जीवन में फैले शुष्क रेगिस्तान की तपन 

झुलसा न सकी इसे 

आहत न कर सकी

दोपहर की चिलचिलाती धूप,

तुम्हारे प्यार को चुनर बना 

ओढ़ जो लिया था मैंने 

तुम्हारे नशीले गीतों को 

कान्हा की बाँसुरी की तान समझ  
पी गये थे मेरे कर्ण पुट 
प्यार की उस झील के किनारे को 
यमुना का कूल समझ 
गोपी जो बन गई थी मैं |

 

 

     मोहिनी चोरडिया

 

 

Views: 541

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 5, 2011 at 3:49pm

//झुलसा न सकी इसे 

आहत न कर सकी

दोपहर की चिलचिलाती धूप,

तुम्हारे प्यार को चुनर बना 

ओढ़ जो लिया था मैंने 

तुम्हारे नशीले गीतों को //


बेहतरीन भावों में बंधी हुई अनुपम काव्य कृति ..........कृपया बधाई स्वीकार करें !


Comment by Ambrish Singh Baghel on September 2, 2011 at 8:43am

बहूत ही सुन्दर पंक्तियाँ 

Comment by monika on August 31, 2011 at 1:13am

वाह मोहिनी जी बहुत खूब.

जीवन में फैले शुष्क रेगिस्तान की तपन 

झुलसा न सकी इसे 

आहत न कर सकी

दोपहर की चिलचिलाती धूप,

बहुत ही बढ़िया पंक्तिया हे बधाई स्वीकार करे.

Comment by mohinichordia on August 24, 2011 at 8:44pm

बहुत -बहुत धन्यवाद सौरभ जी ,अरुण कुमार पाण्डेय जी ,आशीष जी .इसी तरह हौसला -अफजाई करते रहिये \

Comment by आशीष यादव on August 24, 2011 at 6:23pm

sundar bhawabhiwyakti hai.

Comment by दुष्यंत सेवक on August 24, 2011 at 5:02pm
bahut hi khubsoorat shabdon se saji ek behtareen rachna aadreya madhuri ji....badhai sweekaren

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 24, 2011 at 3:56pm

विश्वास की डोर बहुत पतली होती है किन्तु उसकी अद्भुत तानता का मर्म समझ पाए, तो, मन-मन कान्हा, तन-तन राधा.. .

इस भाव-प्रवाह पर बधाइयाँ ... .

Comment by Abhinav Arun on August 24, 2011 at 8:46am

एक अप्रतिम मधुर काव्य रचना | इस भावाभिव्यक्ति को शुभकामनाये और मोहिनी जी को बधाई !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Tuesday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service