For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल :- ये खबर इस शहर पे तारी हुई

 ग़ज़ल :- ये  खबर इस शहर पे तारी हुई 
 
यह खबर इस शहर पे तारी हुई ,
मछलियों  की जाल से यारी हुई |
 
फूल था मधुरस लुटा हल्का हुआ ,
तितली थी एहसास से भारी हुई |
 
आप किस्सागो नहीं  मालूम है ,
आपकी चुप्पी से दुश्वारी हुई |
 
लहरों के षड्यंत्र में फंसने लगी ,
नाव थी हालात  की मारी हुई |
 
रात भर तारों को हांका चाँद ने ,
सुब्ह को रुकने के लाचारी हुई |
 
द्रोह के  पासे सभी उलटे पडे ,
कब कहाँ और किससे गद्दारी हुई |
 
सुख में बच्चे बाप से लिपटे रहे ,
दुःख में माँ  के गोद की बारी हुई |
 
अब सभी को उसकी शादी की फिकर ,
बाप  के  बिन बेटी बेचारी हुई |
          
                      =   अभिनव अरुण
 
 
 
 
 

Views: 605

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on August 27, 2011 at 8:39am

THANKS SHANNO JI ! YAHI SHER MUJHE PASAND HAI SABSE ZYADA |

 

Comment by Shanno Aggarwal on August 26, 2011 at 9:04pm
बहुत खूब, अरुण...सभी शेर अच्छे लगे....

सुख में बच्चे बाप से लिपटे रहे ,
दुःख में माँ के गोद की बारी हुई |
Comment by Abhinav Arun on August 26, 2011 at 4:36pm

WELCOME  DUSHYANT JI AAPKA NAAM HEE KAAFI HAI ASAR KE LIYE !

 

Comment by दुष्यंत सेवक on August 26, 2011 at 3:01pm
बहुत आभार अरुण जी, बस मंच की परिपाटियों के हिसाब से खुद को संवार रहा हूँ
Comment by Abhinav Arun on August 26, 2011 at 2:57pm

वाह दुष्यंत जी क्या कहने वाह !! आपकी इस विस्तृत समीक्षा ने इस ग़ज़ल की गहराई और बढ़ा दी | आभारी हूँ आपका | स्नेह बना रहे | man to mera PRAFFULIT HO GAYA "" THANKS DUSHYANT JEE

Comment by दुष्यंत सेवक on August 24, 2011 at 1:25pm
यह खबर इस शहर पे तारी हुई ,
मछलियों की जाल से यारी हुई |
मौजूदा परिप्रेक्ष्य को उल्लेखित करती सटीक पंक्तियाँ

फूल था मधुरस लुटा हल्का हुआ ,
तितली थी एहसास से भारी हुई |
देने और पाने की अहमियत को दर्शाता सुन्दर शेर

आप किस्सागो नहीं मालूम है ,
आपकी चुप्पी से दुश्वारी हुई |
चुप्पी और किस्सागोई कुछ oxymoronic सा थॉट है.

लहरों के षड्यंत्र में फंसने लगी ,
नाव थी हालात की मारी हुई |
भारत के जनमानस की भी कुछ यही दास्तान है सर

रात भर तारों को हांका चाँद ने ,
सुब्ह को रुकने के लाचारी हुई |
मैं निशब्द हूँ...बेहद शानदार

द्रोह के पासे सभी उलटे पडे ,
कब कहाँ और किससे गद्दारी हुई |
फिर से मौजूदा परिप्रेक्ष्य को दर्शाती पंक्तियाँ साधुवाद

सुख में बच्चे बाप से लिपटे रहे ,
दुःख में माँ के गोद की बारी हुई |
संबंधों की चहल पहल को दर्शाता खुबसूरत शेर

अब सभी को उसकी शादी की फिकर ,
बाप के बिन बेटी बेचारी हुई |
अति सुन्दर अंजाम इससे बेहतर नहीं हो सकता था इस ग़ज़ल का
= अभिनव अरुण
और ये हैं अरुण जी जिन्होंने मन प्रफुल्लित कर दिया इस रचना को पोस्ट कर के...आभार आपका सर
Comment by आशीष यादव on August 24, 2011 at 10:31am
Lajwab. Upar aur niche dono tarf se dusre she'r mujhe behad achchhe lge. Upr se dusra to gahri chot kar rha h. Bahut bahut badhai is behtarin ghazal k liye.
Comment by आशीष यादव on August 24, 2011 at 10:30am
Lajwab. Upar aur niche dono tarf se dusre she'r mujhe behad achchhe lge. Upr se dusra to gahri chot kar rha h. Bahut bahut badhai is behtarin ghazal k liye.
Comment by Atendra Kumar Singh "Ravi" on August 15, 2011 at 4:52pm

Ek se badkar Ek Sher .....Kya Baat hai Sir Ji......Badhai Swikaar Kare Atendra Ka........


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 15, 2011 at 4:23pm

इस ग़ज़ल के सभी शेर हर तरह से क़ामयाब हैं, अरुण अभिनव भाई. किस एक अशार का नाम लें. मतले से लेकर आखिरी अशार तक सभी के सभी मायनों से भरे और भारी.

बहुत-बहुत बधाई. 

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार अच्छी घनाक्षरी रची है. गेयता के लिए अभी और…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्र को परिभाषित करती सुन्दर प्रस्तुतियाँ हैं…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   दिखती  न  थाह  कहीं, राह  कहीं  और  कोई,…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी,  रचना की प्रशंसा  के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार|"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी,  घनाक्षरी के विधान  एवं चित्र के अनुरूप हैं चारों पंक्तियाँ| …"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी //नदियों का भिन्न रंग, बहने का भिन्न ढंग, एक शांत एक तेज, दोनों में खो…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मैं प्रथम तू बाद में,वाद और विवाद में,क्या धरा कुछ  सोचिए,मीन मेख भाव में धार जल की शांत है,या…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्रोक्त भाव सहित मनहरण घनाक्षरी छंद प्रिय की मनुहार थी, धरा ने श्रृंगार किया, उतरा मधुमास जो,…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी छंद ++++++++++++++++++ कुंभ उनको जाना है, पुन्य जिनको पाना है, लाखों पहुँचे प्रयाग,…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय मंच संचालक , पोस्ट कुछ देर बाद  स्वतः  डिलीट क्यों हो रहा है |"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . जीत - हार

दोहा सप्तक. . . जीत -हार माना जीवन को नहीं, अच्छी लगती हार । संग जीत के हार से, जीवन का शृंगार…See More
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में आपका हार्दिक स्वागत है "
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service