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ग़जल ( प्रोफ. चेतन प्रकाश चेतन )

221 2122 221 2122

सावन हवा सुहानी आँखों कहीं नमी है
अब आ भी जाओ जानाँ तुम बिन नहीं खुशी है

छोड़ो भी दिल्लगी अब तन्हाई मारती है
बढ़ती है अब उदासी बदहाल ज़िन्दगी है

बादल बुझा रहा है सुन प्यास इस ज़मीं की
तू भी बसा मेरी दुनिया जो नहीं सजी है

ताउम्र तुमको चाहा मेरा जहाँ तुम्हीं हो
जाँ दिल मलो कि अब तो बेदर्द सी ग़मी है

अलमस्त जी रहे थे हम साथ-साथ जानाँ
ऐसा हुआ वो क्या हमसे जो ये बेदिली है

हासिल हों सब खुशियाँ आदम को ज़िन्दगी में
मुमकिन कहाँ वो दुनिया इन्साँ को हर खुशी है

बादे सबा महकती जो बह रही है गुलशन
उसमें भी खुश्बुओं सी तेरी शराब ही है

राहत ख़ुदा की यूँ ही मिलती नहीं कभी सुन
उसके लिये तो चेतन ज़ाहिर वो बन्दगी है

प्रोफ. चेतन प्रकाश चेतन
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Shyam Narain Verma on July 10, 2023 at 11:05pm
नमस्ते जी, बहुत खूब, हार्दिक बधाई l सादर

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