सासु यहाँ घर पर करे, अब बाई का काम।
बहू सुबह है निकलती, आती है फिर शाम॥
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शिक्षा सारी व्यर्थ है, व्यर्थ समझ सब ज्ञान।
पदवी पा करता नही, मात पिता सम्मान।।
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शिक्षा जिसमें सीख हो, और श्रेष्ठ संस्कार।
जीवन को उज्ज्वल करे, सिखलाए व्यवहार॥
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मेघ छटे अब खिल गई, यहाँ सुनहली धूप।
धुली धुली सी लग रही। मोहक प्रकृति अनूप॥
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हम चिंता निज की करें, प्रभु देखे संसार।
जिससे दुनिया का भला, वह करता करतार॥
स्वरचित मौलिक रचना।
ओम प्रकाश शर्मा
परीमहल, शिमला-9
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