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जिंदगी फ़िर हमें उस मोड़ पे क्यों ले आई । याद आई वो घड़ी आँख मेरी भर आई ।
जिंदगी तेरे हर फ़साने को , मैंने कोशिश किया भुलाने को ।
मेरी आंखों से खून के आंसू , कब से बेताब हैं गिर जाने को ।
मेरे माजी को मेरे सामने क्यों ले आई । याद आई वो घड़ी आँख मेरी भर आई ।
मैंने बस मुठ्ठी भर खुशी मांगी , प्यार की थोड़ी सी ज़मीं मांगी ।
अपनी तन्हाइयों से घबड़ाकर , अपनेपन की कुछ नमीं मांगी ।
क्या मिला- क्या ना मिला फ़िर वो बात याद आई । याद आई वो आँख मेरी भर आई ।
जिंदगी मैंने तेरा रूप देखा , चाँदनी रात में भी धूप देखा ।
कौन कहता है हसीं है ज़िन्दगी , मैंने अब तक उसे कुरूप देखा ।
जिंदगी पाने की हमने बहुत सज़ा पाई । याद आई वो घड़ी आँख मेरी भर आई ।

: गीतकार ---- सतीश मापतपुरी
मो - 09334414611

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Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on July 25, 2010 at 10:42am
जिंदगी फ़िर हमें उस मोड़ पे क्यों ले आई । याद आई वो घड़ी आँख मेरी भर आई ।
जिंदगी तेरे हर फ़साने को , मैंने कोशिश किया भुलाने को ।

बहुत ही बढ़िया रचना है सतीश भैया......लाजवाब है.....
Comment by satish mapatpuri on July 19, 2010 at 3:02pm
आशाजी, योगराज प्रभाकरजी, बब्बन भाई, गुरूजी, आप सबको मेरी यह रचना पसंद आई और आपने हौसला- अफजाई की- इसके लिए आप सब को नमन और बधाई.
Comment by asha pandey ojha on July 18, 2010 at 2:18pm
waah mashaallha kya khoob geet likha hai .. kamal .. dil khush ho gya

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on July 17, 2010 at 10:45am
बहुत ही रवानी से भरा हुआ गीत कहा है आपने सतीश भाई, आनंद आया - जय हो
Comment by baban pandey on July 16, 2010 at 9:14pm
कौन कहता है हसीं है ज़िन्दगी , मैंने अब तक उसे कुरूप देखा ।
जिंदगी पाने की हमने बहुत सज़ा पाई । याद आई वो घड़ी आँख मेरी भर आई ।.
apna apna tajurva hai satish bhai ....
Comment by Rash Bihari Ravi on July 16, 2010 at 6:42pm
जिंदगी तेरे हर फ़साने को , मैंने कोशिश किया भुलाने को ।
मेरी आंखों से खून के आंसू , कब से बेताब हैं गिर जाने को ।
bahut sunder sandar dil bag bag ho gaya,

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