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चलिये शाश्वत गंगा की खोज करें- तृतीय खंड (3)

प्रस्तुत खंड में ज्ञानी गंगा उत्पति की कथा बयान कर रहा है। गंगा की उत्पति  विष्णु हृदय से मानी जाती है। वह विष्णु हृदय क्या है - ज्ञानी इस की विवेचना के लिए प्रयतन रत है।
प्रस्तुत कथा और इस का ऐसा पठन शायद किसी और ग्रन्थ में न उपलब्ध हो इस लिए पाठक से निवेदन  है  कि वह इस में समानांतर धार्मिक कथा की खोज न करे। प्रस्तुत कथा केवल ज्ञानी की अपनी आत्मानुभूति है  ....
(डॉ स्वर्ण जे ओमकार ) 

ज्ञानी का तीसरा प्रवचन (3)

 गतांक से आगे...

‘ब्रहमण्ड’ का जो छोटा अणु
वही है प्रकृति का रहस्य
वही है प्रकृति का सत्य
मानव ने कहा विश्व  का अणु
नाम दिया है ‘विष्णु’

जल में अणु थल में अणु
हवा अग्नि आकाश में अणु
अणु से जब मिलता अणु
श्रष्टि का होता विस्तार
ऐसे अणु कई स्हस्रार
जड़ बनते फिर बनते चेतन
बनते पशु पक्षि मानव जन

जल में केवल जल के अणु
ऐसा नहीं है
जल के इलावा हैं और कितने अणु
यह भी सही है


जल है अणुओं का एक संगम
जल है अणुओं का एक वाहन

श्रृष्टि जल बिन चल न सकती
श्रृष्टि जल बिन पल न सकती
प्रकृति को यूं रच न सकती


जल से रचना का विस्तार
जल है रचना का आहार

जल से होता श्रृष्टि पालन
जलचर पलते पलते वनचर
जल बिन चले न किसी का जीवन
जल बिन सूनी पृथ्वी बंजर

जल में है आहार के अणु
जीवन के आधार  के अणु
जल तो है आहार का वाहन
जल तो है भोजन का माध्यम

इसी जल के हैं कई नाम
इन में एक है ‘नर’ नाम
इसी जल को कहते नीर
इसी जल को कहते क्षीर

इसी जल में जो रहता अणु
जल से अलग जो बहता अणु
विश्व का अणु जो है ‘विष्णु’
इसी नीर में उस का ‘आयन’
मानव ने उसे कहा नारायण

नारायण है जो जल में रहता
अन्न बन कर या बनकर भोजन
जल ही तो है उसका वाहन
जल में ही उसका ‘आयन’


जल से करता रचना पालन
मानव ने उसे कहा नारायण

पेड़ पौधे पशु पक्षी गण
सब करते हैं जल का सेवन


जल से मिले उन्हें आहार
जल ही तो जीवन आधार


जल में रह कर जो करता पालन
मानव ने उसे कहा नारायण

नीर सागर में रहे नारायण
क्षीर सागर में रहे नारायण


मातृ स्तन है क्षीर का सागर
इसी सागर में रहें नारायण

मातृ स्तन में रहे क्षीर
मातृ स्तन से बहे क्षीर
उसी क्षीर में रहे नारायण
क्षीर सागर में रहें नारायण

(शेष बाकी)

 श्री विष्णु जी का  चित्र The National Museum, New Delhi 47.110/605 के  सौजन्य से http://hi.wikipedia.org/ से आभार सहित 

अधोलिखित परिच्शेद " A Concise Dictionary of Indian Philosophy- by John Grimes" से लिया गया है।  इस में नर का अर्थ जल व आयन का अर्थ मूविंग यानि गतिमान बताया गया है। तब नारायण का अर्थ बनता है "जो जल में रहता है व गतिमान है" विष्णु जी का  पुराणों में दुग्द या क्षीर के सागर में निवास बताया गया है।

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Comment by D P Mathur on June 17, 2013 at 8:06am

आपकी इस ज्ञान गंगा ने सच में मेरा ज्ञान बढ़ा दिया और सोचने की एक नई दिशा मिली - आपको हार्दिक बधाई !

Comment by Dr. Swaran J. Omcawr on April 15, 2013 at 9:13pm

 धन्यवाद coontee mukerji जी 

Comment by Dr. Swaran J. Omcawr on April 15, 2013 at 9:13pm

धन्यवाद   ram shiromani pathak जी 

Comment by ram shiromani pathak on April 10, 2013 at 1:22pm

बहुत ही सुंदर है. आशा है पाठक गण को समझने में बहुत आसानी होगी .बहुत धन्यवाद.

Comment by coontee mukerji on April 10, 2013 at 1:10pm

dr omkar jee ,सादर अभिवादन .मैं आपकी श्वाश्त गंगा की खोज बहुत बारिकी से पढ़्ती हूँ. आपने जो sciencetific विश्लेषण किया है

बहुत ही सुंदर है. आशा है पाठक गण को समझने में बहुत आसानी होगी .बहुत धन्यवाद.

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