For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राम-रावण कथा (पूर्व-पीठिका) - 2

माल्यवान और सुमाली रक्ष संस्कृति के प्रणेता हेति और प्रहेति के प्रपौत्र थे।
रक्ष संस्कृति का प्रादुर्भाव यक्ष संस्कृति के साथ एक ही समय में एक ही स्थान पर हुआ था। पर कालांतर में उनमें बड़ी दूरियाँ आ गयी थीं। यक्षों की देवों से मित्रता हो गयी थी और रक्षों की शत्रुता। रक्ष या दैत्य आर्यों से कोई भिन्न प्रजाति हों ऐसा नहीं था किंतु आर्य क्योंकि देवों के समर्थक थे (पिछलग्गू शब्द प्रयोग नहीं कर रहा मैं) इसलिये उन्होंने देव विरोधी सभी शक्तियों को त्याज्य मान लिया। कुछ-कुछ वैसे ही जैसे कालांतर में इस्लाम स्वीकर कर लेने वालों को हिन्दुओं ने पूर्णतः त्याज्य मान लिया। वस्तुतः ये सब आर्य संस्कृति के अंदर ही उपसंस्कृतियाँ थीं किंतु आर्य और देव इन्यें हेय मान कर चलते थे और ये सब अपनी महत्ता स्थापित करने के लिये प्रयत्नशील रहते थे। इसीके चलते संघर्ष उत्पन्न होता था।
देव स्वयं में कोई बहुत बड़ी महाशक्ति हों ऐसा नहीं था किंतु उस समय की तीनो महाशक्तियाँ ब्रह्मा, विष्णु और महेश आन्तरिक सहानुभूति रखते थे देवों से। दैत्य भी हालांकि देवों के सौतेले भाई ही थे, इस कारण इन तीनों महाशक्तियांे को दोनों पक्षों के साथ समभाव रखना चाहिये था पर ऐसा नहीं था। इन तीनों में भी ब्रह्मा और शिव प्रयास यह करते थे कि उन पर पक्षपात का आरोप स्थापित न हो पाये - देवों के साथ सहानुभूति होते हुये भी व्यावहारिक तुला समतल पर ही स्थित रहे। किंतु विष्णु खुल कर देवों के पक्ष में खड़े हो जाते थे। इसका कारण भी था। देवराज इन्द्र उनके बड़े भाई थे। बड़े भाई के पक्ष में खड़ा होना स्वाभाविक प्रवृत्ति है। देव पराक्रमी थे किंतु अजेय नहीं थे। दैत्यों ने उन्हें बार-बार पराजित किया किंतु विष्णु का सहयोग मिल जाने से वे अजेय हो जाते थे। माल्यवान आदि इन तीनों भाइयों के किस्से में भी यही हुआ था।
माल्यवान, सुमाली और माली बल-पौरुष में बहुत बढ़े-चढ़े थे।
अद्भुत लंका नगरी इन्होंने ही बसायी थी। बाद में इन्होंने इन्द्र को परास्त कर स्वर्ग पर भी अधिकार कर लिया।
इंद्र अन्य देवताओं के साथ सहायता की प्रार्थना करने शिव के पास कैलाश पहुँचा किंतु शिव ने यह कहते हुये इनकार कर दिया कि - ये तीनों मेरे प्रगाढ़ मित्र सुकेश के पुत्र हैं। इनके विरुद्ध मैं तुम्हारी सहायता नहीं कर सकता।
इस पर इंद्र अपने छोटे भाई विष्णु के पास सहायता माँगने पहुँचा। विष्णु ने क्षीर सागर के चारों ओर अपना विशाल साम्राज्य स्थापित किया था।
विष्णु के सामने माल्वान, सुमाली और माली नहीं टिक पाये। इनकी सारी सेना विष्णु ने नष्ट कर दी थी। सबसे छोटा भाई माली भी रण में खेत रहा था।
इस समय ये बचे-खुचे थोड़े से लोग वापस लंका की ओर भाग रहे थे। विष्णु का सैन्य इनका पीछा कर रहा था। इस कारण ये दिन में सघन वनों-बागों आदि में छुपे रहते थे और रात्रि में जितना संभव हो सके दूर निकल जाने का प्रयास करते थे। पिछले दो दिनों से इन्हें कोई सही आश्रय नहीं मिला था और विष्णु का सैन्य पीछे था ही इसलिये ये बिना रुके दो दिन और दो रात भागते ही रहे थे, बस एक जंगल में एक मुहूर्त का विश्राम अवश्य किया था। पर उस जंगल में भी खाने लायक कुछ नहीं मिला था।
चपला, अचेत होने से पूर्व उसने जो नाम लिया था, के अजीब व्यवहार ने माल्यवान और सुमाली दोनों को ही चिंता में डाल दिया था। उन्हें आभास लग रहा था कि सागर तक इस समस्त भूखंड में उन्हें ऐसे ही शत्रुतापूर्ण व्यवहार का सामना करना पड़ सकता है। उनकी संस्कृति रक्ष है तो भी आर्य तो वे भी हैं, फिर आर्यों के मन में उनके लिये ऐसा विकट, अतार्किक द्वेष क्यों है ? क्या बिगाड़ा है उन्होंने इन आर्यों का। उन्होंने तो देवराज पर आक्रमण किया था, इस आर्यभूमि के किसी सम्राट से तो उनका कोई झगड़ा था ही नहीं।
यही स्थिति दैत्यों के विषय में है। वैमनस्य देवों और दैत्यों के मध्य है। जब भी कोई दैत्य शक्ति सम्पन्न होता है वह देवों से भिड़ जाता है जाकर। आर्यों पर तो कोई आक्रमण करता नहीं फिर भी आर्य उनसे द्वेष करते हैं। उनके विषय में तमाम अपमान जनक कहानियाँ गढ़ते हैं। दैत्यराज बलि तो कितना चरित्रवान सम्राट् था फिर भी इसी विष्णु ने इंद्र के कहने से छल से उसे सत्ताच्युत कर दिया पर किसी भी आर्य सम्राट ने चूँ तक नहीं की।
ये दोनों ही अपना विश्राम और भोजन भूल कर चंचला के उपचार में लग गये थे। चोट गंभीर थी। यदि फौरन उपचार न मिला तो यह जीवन भर उठने-बैठने लायक नहीं रहेगी। पूर्ण पक्षाघात का शिकार भी हो सकती है। भाग्य से उपचार का कुछ सामान उनके साथ था। बाग में भी तलाश करने से कुछ बूटियाँ मिल गयी थीं। बस्ती में जाने का खतरा वे नहीं उठा सकते थे, अगर किसी तरह से विष्णु के किसी आदमी को जानकारी हो गयी तो बहुत बुरा हो सकता था। चेहरे पर कटार से हुआ घाव गहरा था। जबड़ा चटक गया था। दाहिने जबड़े से लेकर आँख के नीचे की हड्डी तक बुरी तरह से कट गया था। उसका उपचार कर दिया गया था पर उन्हें लग रहा था कि चेहरा सदैव के लिये कुरूप तो हो ही जायेगा। ठोढ़ी टेढ़ी हो जायेगी, एक आँख पर भी असर पड़ने की संभावना है। जाँघ के दोनों ओर खपच्चियाँ रख कर औषधि लगाकर बाँध दिया गया था। अभी बच्ची है हड्डी आसानी से जुड़ जायेगी। चाल में लंगड़ाहट रह सकती है। सबसे बुरी चोट पीठ में थी। रीढ़ की हड्डी टूट गयी थी। माँस पेशियाँ भी फट गयी थीं। जितना संभव था उतनी व्यवस्था उन्होंने कर दी थी पर यह तय था कि इस लड़की की कमर सदैव के लिये झुक जायेगी। यह सीधी खड़ी नहीं हो सकेगी। पर वे क्या कर सकते थे। सारे कांड के लिये लड़की स्वयं उत्तरदायी थी। उनमें से किसी ने भी कोई वार नहीं किया था। काश वह थोड़ी समझ से काम लेती !
साँझ होने के करीब दो और लड़के आ गये थे। वे लड़की की अपेक्षा बहुत सहिष्णु साबित हुये। अगर वे भी लड़की जैसे ही निकलते तो लड़की के हित में बहुत घातक हो सकता था पर उन्होंने बिना हाथापाई किये सारी बात सुनी। माल्यवान ने उन्हें सारी घटना के बारे में बताया। जो-जो इलाज कर दिया गया था वह समझा दिया, आगे के लिये आवश्यक निर्देश दे दिये। सूरज ढलने तक उन दोनों को रोके रखा गया। फिर सबने अपने-अपने घोड़ों पर सवार होकर आगे की यात्रा आरंभ की। सुमाली का बड़ा पुत्र प्रहस्त सबसे बाद में निकला। जब सब आँखों से ओझल होने की कगार पर आ गये वह लड़कों से बोला -
‘‘इसे अतिशीघ्र किसी कुशल वैद्य के संरक्षण में ले जाना। एक जना जाकर एक चारपाई और कुछ लोगों को लिवा लाओ। चारपाई पर ही लेकर जाना इसे, सावधानी से, कमर में कोई झटका न लगने पाये अन्यथा बहुत बुरा होगा।’’ इतना कह कर उसने अपने घोड़े को ऐड़ लगा दी। पलक झपकते ही घोड़ा हवा से बातें करने लगा। अब लड़के अगर बस्ती में जाकर सूचना कर भी देते तो कोई उनकी हवा भी नहीं पा सकता था।
हाँ ! क्षतिपूर्ति लेना इन लड़कों ने भी किसी भी तरह स्वीकार नहीं किया था।


मौलिक व अप्रकाशित
सुलभ अग्निहोत्री

Views: 564

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sulabh Agnihotri on June 23, 2016 at 10:55am

आगे से ध्यान रखूँगा - सौरभ जी !

Comment by Sulabh Agnihotri on June 23, 2016 at 10:54am

अभार आदरणीया !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 22, 2016 at 5:43pm

बढ़िया ..  दो पॉरा के बीच स्थान अवश्य रखें, आदरणीय. अन्यथा, शब्द पर शब्द चढ़े दिखते हैं. ऐसे प्रस्तुतीकरण से वाचन-प्रक्रिया में भी सहजता रहती है.  

आगे की कथा की प्रतीक्षा है. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 20, 2016 at 1:47pm

धार्मिक ग्रंथ के इस आलेख को पढ़कर अच्छा लगा रोचक वर्णन है |हार्दिक बधाई आपको आ० सुलभ अग्निहोत्री जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
11 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post रोला छंद. . . .
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
11 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।"
11 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय जी सृजन पर आपके मार्गदर्शन का दिल से आभार । सर आपसे अनुरोध है कि जिन भरती शब्दों का आपने…"
12 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने एवं समीक्षा का दिल से आभार । मार्गदर्शन का दिल से…"
12 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
12 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"बंधुवर सुशील सरना, नमस्कार! 'श्याम' के दोहराव से बचा सकता था, शेष कहूँ तो भाव-प्रकाशन की…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"बंधुवर, नमस्कार ! क्षमा करें, आप ओ बी ओ पर वरिष्ठ रचनाकार हैं, किंतु मेरी व्यक्तिगत रूप से आपसे…"
yesterday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post लघुकविता
"बंधु, लघु कविता सूक्ष्म काव्य विवरण नहीं, सूत्र काव्य होता है, उदाहरण दूँ तो कह सकता हूँ, रचनाकार…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Dharmendra Kumar Yadav's blog post ममता का मर्म
"बंधु, नमस्कार, रचना का स्वरूप जान कर ही काव्य का मूल्यांकन , भाव-शिल्प की दृष्टिकोण से सम्भव है,…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"अच्छे दोहे हुए हैं, आदरणीय सरना साहब, बधाई ! किन्तु दोहा-छंद मात्र कलों ( त्रिकल द्विकल आदि का…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service