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यहाँ तू नहीं ये कमी तो रहेगी 

उदासी जहन  में जमी तो रहेगी 

 

हटेगी नहीं जब ये कुहरे की चादर 

वहाँ बस्तियों में नमी तो रहेगी 

 

नहीं जब तलक कोई साहिल मिलेगा 

मुहब्बत की कश्ती थमी तो रहेगी 

 

करे जो तू शिरकत जरा इस चमन में 

हवा ये सुगन्धित रमी तो रहेगी 

 

 

भले मौन हो जाए  तेरा नसीबा 

कहीं ना कहीं सरग़मी  तो रहेगी 

 

वफ़ा क्या करोगे मैं सब जानती हूँ 

रगो  में झलक पश्चिमी तो रहेगी 

 

लिखे ना लिखे "राज" तुझ पे ग़ज़ल वो 

फ़कत दीद की  मरहमी तो रहेगी 

 

 

****************************

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 3, 2013 at 10:40am

अजय जी आपको ग़ज़ल पसंद आई उसके भाव पसंद आये दिल से शुक्रिया 

Comment by vijay nikore on February 3, 2013 at 7:58am

आदरणीया "राज" जी:

यहाँ तू नहीं ये कमी तो रहेगी

उदासी जहन  में जमी तो रहेगी

हटेगी नहीं जब ये कुहरे की चादर

वहाँ बस्तियों में नमी तो रहेगी

बहुत ही सुन्दर भाव हैं।

बधाई।

विजय निकोर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 3, 2013 at 7:33am

आदरणीय राजेशकुमारीजी,  ग़ज़ल तो आजकल आपके अनुसार घूम-घाम रही है ! वाह !

लेकिनमैं इस शेर पर कुछ कहूँगा, उचित लगे तो अनुमोदित कीजियेगा.

नहीं जब तलक कोई साहिल मिलेगा
मुहब्बत की कश्ती थमी तो रहेगी.. 

अगर साहिल ही नहीं मिलेगा तो कश्ती थमेगी ? या मुसलसल बहती रहेगी,.. उचित साहिल के मिल जाने तक ? .. :-)))

अगर यह शेर कुछ और कहना चाह रहा है तो अवश्य बताइयेगा.. 

सादर

Comment by ajay sharma on February 2, 2013 at 11:59pm

really worth commenting gazal ,, malte ka sher ,,,, bahut umda ,,यहाँ तू नहीं ये कमी तो रहेगी उदासी जहन  में जमी तो रहेगी 

,,,,,,,,,,,हटेगी नहीं जब ये कुहरे की चादर 

वहाँ बस्तियों में नमी तो रहेगी  ,,,,,,,,,,,,,kuch sarthak kah gaya hai ye sher apka 

ik sunder , sadhi huyi gazal ke  liye bahut badhayiiiii


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 2, 2013 at 11:11pm

नादिर खान जी आपको ग़ज़ल पसंद आई लिखना सार्थक हुआ तहे दिल से शुक्रिया |

Comment by नादिर ख़ान on February 2, 2013 at 10:59pm

हटेगी नहीं जब ये कुहरे की चादर 

वहाँ बस्तियों में नमी तो रहेगी 

 

नहीं जब तलक कोई साहिल मिलेगा 

मुहब्बत की कश्ती थमी तो रहेगी 

.........................................

वफ़ा क्या करोगे मैं सब जानती हूँ 

रगो  में झलक पश्चिमी तो रहेगी 

आदरणीय राजेश कुमारी जी

 उम्दा गज़ल के लिए बधायी

हर शेर बहुत कुछ कह रहा है

दाद कूबूल करें...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 2, 2013 at 10:58pm

प्रिय महिमा श्री जी आपको ग़ज़ल पसंद आई दिल से आपका शुक्रिया

Comment by MAHIMA SHREE on February 2, 2013 at 10:47pm

नहीं जब तलक कोई साहिल मिलेगा 

मुहब्बत की कश्ती थमी तो

भले मौन हो जाए  तेरा नसीबा 

कहीं ना कहीं सरग़मी  तो रहेगी 

 

भले मौन हो जाए  तेरा नसीबा 

कहीं ना कहीं सरग़मी  तो रहेगी 

भले मौन हो जाए  तेरा नसीबा 

कहीं ना कहीं सरग़मी  तो रहेगी

लिखे ना लिखे "राज" तुझ पे ग़ज़ल वो 

फ़कत दीद की  मरहमी तो रहेगी 

नमस्कार आदरणीया राजेश दी उपरोक्त सभी शेर दिल को छु गए .. बधाई स्वीकार करें

  

 

 

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