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चोर का मित्र जब से बना बादशाह (ग़ज़ल)

212 212 212 212 

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चोर का मित्र जब से बना बादशाह

चोर को चोर कहना हुआ है गुनाह

वो जो संख्या में कम थे वो मारे गए

कुछ गुनहगार थे शेष थे बेगुनाह

आज मुंशिफ के कातिल ने हँसकर कहा

अब मेरा क्या करेंगे सुबूत-ओ-गवाह

खून में उसके सदियों से व्यापार है 

बेच देगा वतन वो हटी गर निगाह

एक बंदर से उम्मीद है और क्या  

मारता है गुलाटी करो वाह वाह

एक मौका सुनो फिर से दे दो उसे

जो बचा है उसे भी करे वो तबाह

-------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 14, 2024 at 2:57pm

बहुत बहुत शुक्रिया  Dr.Prachi Singh जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 16, 2024 at 12:04am

सभी अशआर बहुत धारदार हुए हैं धर्मेन्द्र भाई जी 

बहुत बधाई 

कृपया ध्यान दे...

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