पतझड़ छोड़ वसन्त में, उग जाते हैं शूल
जीवन में रहता नहीं, समय सदा अनुकूल।१।
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सावन सूखा बीतता, कभी डुबोता जेठ
बिना भूल के भी समय, देता कान उमेठ।२।
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करते सुख की कामना, मिलते हैं आघात
जब बोते सूखा पड़े, पकने पर बरसात।३।
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अनचाही जो हो दशा, दुखी न होना मीत
देना मुट्ठी बंद ही, रही समय की रीत।४।
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रहा निराला ही सदा, यहाँ समय का खेल
जीवन कटे बिछोह में, मरण कराता मेल।५।
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छुरी बगल में मीत के, दुश्मन के कर फूल
कैसे -कैसे साथ रख, चलता समय उसूल।६।
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लाखों भेजे झट कभी, तट पर देने साथ
और कभी मझधार में, समय छुड़ा दे हाथ।७।
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मोती जिसने काल के, कहते रखे सँभाल।
होने देता है नहीं, कभी समय कंगाल।८।
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धनवानों की नींद हर, भरता नित भंडार
निर्धन को कंगाल कर, देता नींद अपार।९।
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समय नहीं है बोलता, करो समय का मान
सीख समय पर ये स्वयं, है पुरखों का ज्ञान।१०।
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मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आ. भाई श्यामनाराण जी, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।
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