For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

धूल में खेले हुए, कितने ज़माने हो गए।

ये पता ही ना चला, कब हम सयाने हो गए।।

अब मुहल्ले में नई, दास्तान हैं बनने लगीं।

इश्क़ के किस्से सभी मेरे, पुराने हो गए।।

शब्द कुछ यूँ ही पिरोकर, इक बहर में रख लिए।

आपके होंठों से लगकर, वो तराने हो गए।।

ये सियासत भी मुझे, लगती है पारस की तरह।

सेवकों की झोपड़ीयां, अब ख़ज़ाने हो गए।

सब अनूभव ज़िन्दगी के जोड़कर रखता तु जा।

शैब में कुछ और भी, किस्से सुनाने हो गए।।

साथ सावरिया मिला है, जब से तेरे नाम का।

पल सभी इस ज़िंदगानी के, सुहाने हो गए।।

मुश्किलों से ना कभी 'प्रशांत' घबराया करो।

आपदाएं थी बड़ी जो, अब फ़साने हो गए।।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 270

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 17, 2023 at 4:22pm

आ. प्रशान्त जी ,
आपको पहली बार पढ़ते हुए आप में संभावनाएं दिखाई दे रही हैं. प्रयासरत रहें और गुरुजनों की बातों पर गौर करें. बहर साधने हेतु कई कक्षाएं मंच पर उपलब्ध हैं. मनन कर के लाभान्वित हों.
सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 16, 2023 at 12:52am

आदरणीय प्रशांत जी ग़ज़ल की प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई, गुनीजनों की बातो पर गौर कीजियेगा. सादर 

Comment by प्रशांत दीक्षित 'प्रशांत' on May 15, 2023 at 6:47am

बहुत बहुत धन्यवाद कबीर सर!

इन त्रुटियों को दूर करने का प्रयास करता हूं। आपके इस मार्गदर्शन का ह्रदय से आभारी हूं।

Comment by Samar kabeer on May 13, 2023 at 8:27pm

जनाब 'प्रशांत' जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

ग़ज़ल की कुछ त्रुटियाँ जनाब अशोक गोयल जी ने बता दी हैं ।

ग़ज़ल के साथ उसके अरकान भी लिख दिया करें,इससे नए सीखने वालों को आसानी होती है ।

'अब मुहल्ले में नई, दास्तान हैं बनने लगीं'

इस मिसरे को यूँ कर लें तो बह्र में हो जाएगा:-

'दास्तानें अब मुहल्ले में नई बनने लगीं'

इ'श्क़ के किस्से सभी मेरे, पुराने हो गए'

इस मिसरे में 'किस्से' को "क़िस्से" कर लें ।

'शब्द कुछ यूँ ही पिरोकर, इक बहर में रख लिए'

इस मिसरे में सहीह शब्द "बह्र" 21 है,इस मिसरे को यूँ कह सकते हैं:-

'बह्र में अल्फ़ाज़ कुछ हमने पिरोकर रख दिए'

'सेवकों की झोपड़ीयां, अब ख़ज़ाने हो गए'

इस मिसरे में 'झोपडी' का बहुवचन "झोपड़ियाँ" होगा,दूसरी बात की "झोपड़ियाँ" स्त्रीलिंग होने के कारण रदीफ़ बदल कर 'ख़ज़ाने हो गईं" हो रही है,इस पर ध्यान दें ।

'साथ सावरिया मिला है, जब से तेरे नाम का'

इस मिसरे की बह्र भी चेक करें ।

'मुश्किलों से ना कभी 'प्रशांत' घबराया करो।

आपदाएं थी बड़ी जो, अब फ़साने हो गए'

इस शे' र के ऊला के बारे में जनाब गोयल साहिब बता ही चुके हैं,सानी में 'थी' को "थीं" लिखना उचित होगा ।

बाक़ी शुभ-शुभ ।

Comment by प्रशांत दीक्षित 'प्रशांत' on May 11, 2023 at 6:59am

बहुत बहुत धन्यवाद गोयल सर, इन त्रुटियों को सुधारने का प्रयास करुंगा और यह भी ध्यान रखूंगा कि इनकी पुनरावृत्ति न हो। आपका बहुत बहुत आभार।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  ______ जगमग दीपों वाला उत्सव,उत्साहित बाजार। जेब सोच में पड़ी हुई है,कैसे पाऊँ…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"चार पदों का छंद अनोखा, और चरण हैं आठ  चौपाई औ’ दोहा की है, मिली जुली यह ठाठ  विषम…"
8 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद * बम बन्दूकें और तमंचे, बिना छिड़े ही वार। आए  लेने  नन्हे-मुन्ने,…"
17 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
" प्रात: वंदन,  आदरणीय  !"
23 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद : रौनक  लौट बाजार आयी, जी   एस   टी  भरमार । वस्तुएं …"
23 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम..."
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Oct 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Oct 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Oct 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Oct 12

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service