दोहा पंचक. . . . जीवन
पीपल बूढ़ा हो गया, झड़े पीत सब पात ।
अपनों से मिलने लगे, घाव हीन आघात ।।
ठहरी- ठहरी जिन्दगी, देखे बीते मोड़ ।
टीस छलकती आँख से,पल जो आए छोड़ ।।
विचलित करता है सदा, सुख का बीता काल ।
टूटे से जुड़ती नहीं, कभी वृक्ष से डाल ।।
अपने ही देने लगे, अब अपनों को मात ।
मिलती है संसार में, आँसू की सौग़ात ।।
पल - पल ढलती जिंदगी, ढूँढे अपना छोर ।
क्या जाने किस साँस की, अन्तिम होगी भोर ।।
सुशील सरना / 3-1-25
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Sushil Sarna on January 3, 2025 at 8:30pm — No Comments
दोहा पंचक. . . संघर्ष
आज पुराना हो गया, कल का नूतन वर्ष ।
फिर रोटी के चक्र में, डूबा सारा हर्ष ।।
नया पुराना एक सा, निर्धन का हर वर्ष ।
उसके माथे तो लिखा, रोटी का संघर्ष ।।
ढल जाता है साँझ को, भोर जनित उत्साह ।
लेकिन रहती एक सी, दो रोटी की चाह ।।
किसने जाना काल का, कल क्या होगा रूप ।
सुख की होगी छाँव या, दुख की होगी धूप ।।
चार घड़ी का हर्ष फिर , बीता नूतन वर्ष ।
अविरल चलता है मगर, जीवन का संघर्ष ।।
सुशील सरना /…
ContinueAdded by Sushil Sarna on January 2, 2025 at 2:52pm — No Comments
दोहा पंचक. . . रोटी
सूझ-बूझ ईमान सब, कहने की है बात ।
क्षुधित उदर के सामने , फीके सब जज्बात ।।
मुफलिस को हरदम लगे, लम्बी भूखी रात ।
रोटी हो जो सामने, लगता मधुर प्रभात ।।
जब तक तन में साँस है, चले क्षुधा से जंग ।
बिन रोटी फीके लगें, जीवन के सब रंग ।।
मान-प्रतिष्ठा से बड़ी, उदर क्षुधा की बात ।
रोटी के मोहताज हैं, जीवन के हालात ।।
स्वप्न देखता रात -दिन, रोटी के ही दीन ।
इसी जुगत में दीन यह , हरदम रहता लीन…
Added by Sushil Sarna on December 25, 2024 at 2:37pm — 2 Comments
दोहा पंचक. . .
बाण न आये लौट कर, लौटें कभी न प्राण ।
काल गर्भ में है छुपा, साँसों का निर्वाण ।।
नफरत पीड़ा दायिनी, बैर भाव का मूल ।
जीना चाहो चैन से, नष्ट करो यह शूल ।।
आभासी संसार में, दौलत बड़ी महान ।
हर कीमत पर बेचता , बन्दा अब ईमान ।।
अन्तर्घट के तीर पर, सुख - दुख करते वास ।
सूक्ष्म सत्य है देह में, वाह्य जगत आभास ।।
जीवन मे होता नहीं, जीव कभी संतुष्ट ।
सब कुछ पा कर भी सदा, रहे ईश से रुष्ट ।।
सुशील सरना /…
ContinueAdded by Sushil Sarna on December 23, 2024 at 2:42pm — 2 Comments
दोहा पंचक. . . व्यवहार
हमदर्दी तो आजकल, भूल गया इंसान ।
शून्य भाव के खोल में, सिमटा है नादान ।।
मुँह बोली संवेदना, मुँह बोला व्यवहार ।
मुँह बोले संसार में, मुँह बोला है प्यार ।।
भूले से तकरार में, करो न ऐसी बात ।
जीवन भर देती रहे, वही बात आघात ।।
अन्तस में कुछ और है, बाहर है कुछ और ।
उलझन में यह जिंदगी, कहाँ सत्य का ठौर ।।
दो मुख का यह आदमी, क्या इसका विश्वास ।
इसके अंतर में सदा, छल करता है वास ।।
सुशील सरना /…
ContinueAdded by Sushil Sarna on December 21, 2024 at 3:36pm — No Comments
दोहा पंचक. . . . दिन चार
निर्भय होकर कीजिए, करना है जो काम ।
ध्यान रहे उद्वेग में, भूल न जाऐं राम ।।
कितना अच्छा हो अगर, मिटे हृदय से बैर ।
माँगें अपने इष्ट से, सकल जगत् की खैर ।।
सच्चे का संसार में, होता नहीं अनिष्ट ।
रहता उसके साथ में, उसका अपना इष्ट ।।
पर धन विष की बेल है, रहना इससे दूर ।
इसकी चाहत के सदा, घाव बनें नासूर ।
चादर के अनुरूप ही, अपने पाँव पसार ।
वरना फिर संघर्ष में, बीतेंगे दिन चार ।।
सुशील सरना…
ContinueAdded by Sushil Sarna on December 20, 2024 at 3:49pm — 2 Comments
दोहा पंचक. . . शीत शृंगार
नैनों की मनुहार को, नैन करें स्वीकार ।
प्रणय निवेदन शीत में, कौन करे इंकार ।।
मीत करे जब प्रीति की, आँखों से वो बात ।
जिसमें बीते डूबकर, आलिंगन में रात ।।
अभिसारों में व्याप्त है, मदन भाव का ज्वार ।
इस्पर्शों के दौर में, बिखरा हरसिंगार ।।
बढ़े शीत में प्रीति की, अलबेली सी प्यास ।
साँसें करती मौन में, फिर साँसों से रास ।।
अंग-अंग में शीत से, सुलगे प्रेम अलाव ।
प्रेम क्षुधा के वेग में, बढ़ते गए कसाव…
Added by Sushil Sarna on December 18, 2024 at 8:19pm — 2 Comments
दोहा पंचक. . . . यथार्थ
मन मंथन करता रहा, पाया नहीं जवाब ।
दाता तूने सृष्टि की, कैसी लिखी किताब।।
आदि - अन्त की जगत पर, सुख - दुख करते रास ।
मिटने तक मिटती नहीं, भौतिक सुख की प्यास ।।
जीवन जल का बुलबुला, पल भर में मिट जाय ।
इससे बचने का नहीं, मिलता कभी उपाय ।।
साँसों के अस्तित्व का, सुलझा नहीं सवाल ।
दस्तक दे आता नहीं, क्रूर नियति का काल ।।
साम दाम दण्ड भेद सब, कितने करो प्रपंच ।
निश्चित तुमको छोड़ना, होगा जग का मंच…
Added by Sushil Sarna on December 10, 2024 at 1:39pm — 4 Comments
कुंडलिया. . . .
बच्चे अन्तर्जाल पर , भटक रहे हैं आज ।
दुर्व्यसन में भूलते, जीवन की परवाज ।
जीवन की परवाज , लक्ष्य यह भूले अपना ।
बिना कर्म यह अर्थ , प्राप्ति का देखें सपना ।
जीवन से अंजान, उम्र से हैं यह कच्चे ।
आज नशे में चूर , भटकते देखे बच्चे ।
सुशील सरना / 8-12-24
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on December 8, 2024 at 8:00pm — 2 Comments
दोहा पंचक. . . कागज
कागज के तो फूल सब, होते हैं निर्गंध ।
तितली को भाते नहीं, गंधहीन यह बंध ।।
कितनी बेबस लग रही, कागज की यह नाव ।
कैसे हो तूफान में,साहिल पर ठहराव ।।
कागज की कश्ती चली, लेकर कुछ अरमान ।
रेजा - रेजा कर गया , स्वप्न सभी तूफान ।।
कैसी भी हो डूबती, कागज वाली नाव ।
हृदय विदारक दृश्य से, नैनों से हो स्राव ।
कागज पर लिख डालिए, चाहे जितने भाव ।
कागज कभी न भीगता, कितने ही हों घाव ।।
सुशील सरना /…
ContinueAdded by Sushil Sarna on December 3, 2024 at 8:57pm — 4 Comments
कुंडलिया. . . .
मीरा को गिरधर मिले, मिले रमा को श्याम ।
संग सूर को ले चले, माधव अपने धाम ।
माधव अपने धाम , भक्ति की अद्भुत माया ।
हर मुश्किल में साथ, श्याम की चलती छाया ।
भजें हरी का नाम , साथ में बजे मँजीरा ।
भक्ति भाव में डूब, रास फिर करती मीरा ।
सुशील सरना / 1-12-24
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on December 1, 2024 at 9:10pm — 4 Comments
दोहा सप्तक. .. . विरह
देख विरहिणी पीर को, बाती हुई उदास ।
गालों पर रुक- रुक बही , पिया मिलन की आस ।।
चैन छीन कर ले गया, परदेसी का प्यार ।
आहट उसकी खो गई, सूना लगता द्वार ।।
जलती बाती से करे, शलभ अनोखा प्यार ।
जल कर उसके प्यार में, तज देता संसार ।।
तिल- तिल तड़पे विरहिणी, कहे न मन की बात ।
आँखों से झर - झर बहें, प्रीति जनित आघात ।।
पिया मिलन में नींद तो, रहे नयन से दूर ।
पिया दूर तो भी नयन , जगने को मजबूर ।।
बड़ा अजब है…
ContinueAdded by Sushil Sarna on November 27, 2024 at 4:13pm — 2 Comments
दोहा सप्तक. . . . विविध
मौन घाट मैं प्रेम का, तू चंचल जल धार ।
कैसे तेरे वेग से, करूँ अमर अभिसार ।।
जब आती हैं आँधियाँ, करती घोर विनाश ।
अपनी दम्भी धूल से, ढक देती आकाश ।।
मैं मेरा की रट यहाँ, गूँज रही हर ओर ।
निगल न ले इंसान को,और -और का शोर ।।
किसको अपना हम कहें, किसको मानें गैर ।
अपनेपन की आड़ में, लोग निकालें बैर ।।
अर्थ बिना संसार में, सब कुछ लगता व्यर्थ ।
आभासी दुश्वारियाँ, केवल हरता अर्थ ।।
कल ही कल की सोच में,…
ContinueAdded by Sushil Sarna on November 25, 2024 at 5:00pm — 2 Comments
दोहा पंचक. . . . शीत
अलसायी सी गुनगुनी , उतरी नभ से धूप ।
बड़ा सुहाना भोर में, लगता उसका रूप ।।
धुन्ध चीर कर आ गई, आखिर मीठी धूप ।
हाथ जोड़ वंदन करें, निर्धन हो या भूप ।।
शीत ऋतु में धूप से , मिले मधुर आनन्द ।
गरम-गरम हो चाय फिर , रचें प्रेम के छन्द ।।
शीत भोर की धुंध में, ठिठुर रही है धूप ।
शरमाता है शाल में, गौर वर्ण का रूप ।।
धुन्ध भयंकर साथ फिर, शीतल चले बयार ।
पहन चुनरिया ओस की, भोर करे शृंगार ।।
सुशील सरना /…
ContinueAdded by Sushil Sarna on November 20, 2024 at 3:55pm — No Comments
दोहा पंचक. . . . मतभेद
इतना भी मत दीजिए, मतभेदों को तूल ।
चाट न ले दीमक सभी , रिश्ते कहीं समूल ।।
मतभेदों को भूलकर, प्रेम करो जीवंत ।
एक यही माधुर्य बस , रहे श्वांस पर्यन्त ।।
रिश्तों के माधुर्य में , बैरी हैं मतभेद ।
सम्बन्धों का टूटना, मन में भरता खेद ।।
मतभेदों की किर्चियाँ, चुभतीं जैसे शूल ।
सम्बन्धों के नाश का, है यह कारण मूल ।।
जितना जल्दी भूलते , मतभेदों को लोग ।
जीवन के आनन्द का, उतना करते भोग ।।
सुशील सरना…
ContinueAdded by Sushil Sarna on November 19, 2024 at 2:51pm — 2 Comments
रोला छंद . . . .
हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।
सदा सत्य के साथ , राह पर चलते रहना ।
पथ में अनगिन शूल , करेंगे पैदा बाधा ।
जीवन का संकल्प , छोड़ना कभी न आधा ।
***
जब तक तन में साँस , बहे यह जीवन धारा ।
विपदाओं से यार, भला कब जीवन हारा ।
सुख - दुख का यह चक्र , सदा से चलता आया ।
उस दाता के खेल, जीव यह समझ न पाया ।
***
जब होता अवसान ,मृदा में मिलती काया ।
जब तक चलती साँस , साथ में चलती छाया ।
भोगों…
Added by Sushil Sarna on November 15, 2024 at 12:43pm — No Comments
रोला छंद . . . .
हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।
सदा सत्य के साथ , राह पर चलते रहना ।
पथ में अनगिन शूल , करेंगे पैदा बाधा ।
जीवन का संकल्प , छोड़ना कभी न आधा ।
***
जब तक तन में साँस , बहे यह जीवन धारा ।
विपदाओं से यार, भला कब जीवन हारा ।
सुख - दुख का यह चक्र , सदा से चलता आया ।
उस दाता के खेल, जीव यह समझ न पाया ।
***
जब होता अवसान ,मृदा में मिलती काया ।
जब तक चलती साँस , साथ में चलती छाया ।
भोगों…
Added by Sushil Sarna on November 15, 2024 at 12:42pm — 2 Comments
दोहा पंचक. . . विविध
देख उजाला भोर का, डर कर भागी रात ।
कहीं उजागर रात की, हो ना जाए बात ।।
गुलदानों में आजकल, सजते नकली फूल ।
सच्चाई के तोड़ते, नकली फूल उसूल ।।
धर्म - कर्म ईमान सब, बेमतलब की बात ।
क्षुधित उदर को चाहिए, केवल रोटी भात ।।
आँधी आई अर्थ की, दरकी हर दीवार ।
अपनी ही दहलीज पर, रिश्ते सब लाचार ।
नवयुग के परिवेश में, प्यार बना व्यापार ।
प्यार नहीं है जिस्म को, जिस्मानी दरकार ।।
सुशील सरना /…
ContinueAdded by Sushil Sarna on November 9, 2024 at 3:30pm — 4 Comments
दोहा पंचक. . . . करवाचौथ
चली सुहागन चाँद का, करने को दीदार ।
खैर सजन की चाँद से, माँगे बारम्बार ।।
सधवा ढूँढे चाँद को, विभावरी में आज ।
नहीं प्रतीक्षा का उसे, भाता यह अंदाज ।।
पावन करवा चौथ का, आया है त्योहार ।
सधवा देखे चाँद को, कर सोलह शृंगार ।।
अद्भुत करवा चौथ का, होता है त्योहार ।
निर्जल रह कर माँगती, अपने पति का प्यार ।।
भरा माँग में उम्र भर , रहे सदा सिन्दूर ।
हरदम दमके आँख में , सदा सजन का नूर ।।
सुशील सरना /…
Added by Sushil Sarna on October 20, 2024 at 3:13pm — 3 Comments
दोहा सप्तक. . . . संबंध
पति-पत्नी के मध्य क्यों ,बढ़ने लगे तलाक ।
थोड़े से टकराव में, रिश्ते होते खाक ।।
अहम तोड़ता आजकल , आपस का माधुर्य ।
तार - तार सिन्दूर का, हो जाता सौन्दर्य ।।
खूब तमाशा हो रहा, अदालतों के द्वार ।
आपस के संबंध अब, खूब करें तकरार ।।
अपने-अपने दम्भ की, तोड़े जो प्राचीर ।
उस जोड़े की फिर सदा, सुखमय हो तकदीर ।।
पति-पत्नी के बीच में, बड़ी अहम की होड़ ।
जनम - जनम के साथ को, दिया बीच में छोड़। ।
जरा- जरा सी बात पर,…
ContinueAdded by Sushil Sarna on September 23, 2024 at 3:41pm — 2 Comments
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