For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sushil Sarna's Blog – October 2018 Archive (11)

कसमों की डोरी ....

कसमों की डोरी ....

चलो

कोशिश करते हैं

जीवन को

कसमों की डोरी में

रस्मों की गंध से

अलंकृत कर दें

चलो

कोशिश करते हैं

हिना के रंग को

स्नेह अभिव्यक्ति के

अनमोल पलों से

अमर कर दें

चलो

कोशिश करते हैं

अपरिचिति श्वासों को

हवन कुंड की अग्नि के समक्ष

एक दूजे में समाहित कर

सृष्टि की पावनता को

श्रृंगारित कर दें

चलो

कोशिश करते हैं

लकीरों में छुपे

अपने…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 29, 2018 at 7:44pm — 10 Comments

2 क्षणिकाएं - शान्ति/होड़

शान्ति :

बहुत आज़मा लिया
शान्ति के लिए
युद्ध को
एक बार तो
प्यार को भी
आज़माया होता
शान्ति के लिए

...............................

होड़ ... 

बारूद के धुऐं में
झुलस गई
ज़िंदगी
सो गए
सीमाओं पर
गोलियों के बिछौने पर
खामोशियों का
कफ़न ओढ़े
पथराये से
खामोश रिश्ते
जाने क्या पाने की होड़ में
सीमा पर

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on October 29, 2018 at 4:34pm — 12 Comments

ज़िंदगी..............

ज़िंदगी   .... 

तुम आईं
तो संवरने लगी
ज़िंदगी


साथ जीने
और मरने के
अर्थ
बदलने लगी
ज़िंदगी


मौसम बदला
श्वासें बदलीं
अभिव्यक्ति की साँझ में
बिखरने लगी
ज़िंदगी


प्रतीक्षा
मौन हुई
शब्द शून्य हुए
चुपके-चुपके
स्मृति के परिधान में
सिमटने लगी
ज़िंदगी


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on October 27, 2018 at 4:00pm — 8 Comments

मानव छंद में प्रयास :

मानव छंद में प्रयास :

मेरे मन को जान गयी ।

फिर भी वो अनजान भयी।।

शीत रैन में पवन चले।

प्रेम अगन में बदन जले।।

..................................

देह श्वास की दासी है।

अंतर्घट तक प्यासी है।।

मौत एक सच्चाई है।

जीवन तो अनुयायी है ।।

................................

रैना तुम सँग बीत गई।

मैं समझी मैं जीत गई।।

अब अधरों की बारी है।

तृप्ति तृषा से हारी है।।

सुशील सरना

मौलिक एवं…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 23, 2018 at 8:30pm — 6 Comments

नए आयाम ....

नए आयाम ....

मुझे

नहीं सुननी

कोई आवाज़

मैंने अपने अन्तस् से

हर आवाज़ के साथ जुड़े हुए

अपनेपन की अनुभूति को

तम की काली कोठरी में

दफ़्न कर दिया है

अपनेपन का बोध

कब का मिटा दिया है

अपनेपन की सारी निधियाँ

लुटा चुका हूँ

अब तो मैं

किसी स्मृति का अवशेष हूँ

आवाज़ों के मोह बंधन में

मुझे मत बाँधो

हम दोनों के मन

एक दूसरे की अनुभूतियों के

अव्यक्त स्वरों से

गुंजित हैं

आवाज़ों को चिल्लाने दो…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 22, 2018 at 7:42pm — 6 Comments

रावण :

रावण :

एक रावण
जला दिया
राम ने
एक रावण
ज़िंदा रहा
मन में
किसी
राम के इंतज़ार में

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on October 19, 2018 at 9:24pm — 1 Comment

अनकहा ...

अनकहा ...

अभिव्यक्ति के सुरों में

कुछ तो अनकहा रहने तो

अंतस के हर भाव को

शब्दों पर आश्रित मत करो

अंतस से अभिव्यक्ति का सफर

बहुत लम्बा होता है

अक्सर इस सफ़र में

शब्द

अपना अर्थ बदल देते हैं

शब्दों अवगुंठन में

अभिव्यक्ति

मात्र मूक व्यथा का

प्रतिबिम्ब बन जाती है

भावों की घुटन

मन कंदराओं में

घुट के रह जाती है

जीने के लिए

कुछ तो शेष रहने दो

अभिव्यक्ति के गर्भ में

कुछ तो…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 17, 2018 at 6:30pm — 6 Comments

पागल मन ..... (400 वीं कृति )

पागल मन ..... (400 वीं कृति )

एक

लम्बे अंतराल के बाद

एक परिचित आभास

अजनबी अहसास

अंतस के पृष्ठों पे

जवाबों में उलझा

प्रश्नों का मेला

एकाकार के बाद भी

क्यूँ रहता है

आखिर

ये

पागल मन

अकेला

तुम भी न छुपा सकी

मैं भी न छुपा सका

हृदय प्रीत के

अनबोले से शब्द

स्मृतियाँ

नैन घनों से

तरल हो

अवसन्न से अधरों पर

क्या रुकी कि

मधुपल का हर पल

जीवित हो उठा

मन हस पड़ा…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 15, 2018 at 7:48pm — 14 Comments

३ क्षणिकाएं....

३ क्षणिकाएं....

भावनाओं की घास पर

ओस की बूंदें

रोती रही

शायद

बादलों को ओढ़कर

रात भर

चांदनी

... ... ... ... ... ... .

गोद दिया

सुबह की ओस ने

गुलाब को

महक

तड़पती रही

अहसासों के बियाबाँ में

यादों की नोकों पर

... ... ... .. .. .. .. . .

आकाश

ज़िंदगी भर

इंसान को

छत का सुकून देता रहा

उसे

धूप दी, पानी दिया ,

ईश के होने का

अहसास दिया

मगर

वह रे इंसान

आया जो…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 8, 2018 at 7:07pm — 18 Comments

अजनबी लगता है ... ...

अजनबी लगता है ... ...

न वज़ह पूछी

न मौका मिला

वक्त सरकता रहा

कोई अपना

हर लम्हा

अजनबी लगता रहा

किसे आवाज़ दूँ

तारीकियों की क़बा में

उजालों को ओढ़ कर

खो गयी कोई तलाश

टूट गया

उसके साये होने का भ्रम

बावज़ूद ज़िस्मानी करीबी के

वो हर नफ़स

जाने क्यूँ

अजनबी लगता रहा

झूठ है

वो अजनबी है

मेरी तिश्नगी का

समंदर है वो

मेरे हर ख्वाब का

मंज़र है वो

मेरे ज़ह्न में सदियों से…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 5, 2018 at 6:07pm — 7 Comments

बेज़ुबान पहचान ...

बेज़ुबान पहचान ...

कितनी खामोशी होती है
कब्रिस्तान में
जिस्मों की मानिंद
कब्रों पर लिखे नाम भी
वक्त के थपेड़ों से
धीरे -धीरे
सुपुर्द-ए-ख़ाक हो जाते हैं


रह जाती है
कब्रों पर
उगी घास के नीचे
ख़ामोशी की कबा में सोयी
अपने -पराये रिश्तों की
बेज़ुबान पहचान

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on October 3, 2018 at 4:00pm — 10 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय 'अमित' जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
4 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी आदाब। इस उम्द: ग़ज़ल के लिए ढेरों शुभकामनाएँ।"
28 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय Sanjay Shukla जी आदाब  ग़ज़ल के अच्छे प्रयास पर बधाई स्वीकार करें। इस जहाँ में मिले हर…"
32 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, अभिवादन।  गजल का प्रयास हुआ है सुधार के बाद यह बेहतर हो जायेगी।हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय प्रेम जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियाँ क़ाबिले ग़ौर…"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय चेतन जी नमस्कार ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ ,बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियाँ क़ाबिले…"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर जी  बहुत शुक्रिया आपका हौसला अफ़ज़ाई के लिए और बेहतर सुझाव के लिए सुधार करती हूँ सादर"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय चेतन जी बहुत शुक्रिया हौसला अफ़ज़ाई के लिए आपका मक़्त के में सुधार की कोशिश करती हूं सादर"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी बेहतर इस्लाह ऑयर हौसला अफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया आपका सुधार करती हूँ सादर"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल हुई आपकी बधाई स्वीकार कीजिये अमित जी और अमीर जी के सुझाव क़ाबिले…"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी नमस्कार बहुत ही लाज़वाब ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार कीजिये है शेर क़ाबिले तारीफ़ हुआ ,गिरह भी…"
4 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service