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Er. Ganesh Jee "Bagi"'s Blog – December 2013 Archive (4)

लघुकथा : चलन (गणेश जी बागी)

स्कूल के कुछ दोस्त मिलकर घर में पड़े पुराने कम्बल गरीबों में बाँटने को निकले। कम्बल बाँट कर वे ज्यों ही वापस चलने को हुए, एक बुजुर्ग ने आवाज़ लगाई ………

"बबुआ जी तनिक सुनो"

"जी बाबा, आपको तो कम्बल दे दिया न ?"

"जी बबुआ जी, कम्बल तो दिया और फिर आप लोग ऐसे ही चल दिए"

"ऐसे ही चल दिए मतलब ?"

"बबुआ जी, पिछले तीन दिन से चमचमाती गाड़ियों में साहब लोग आते हैं, कम्बल बाँट कर फ़ोटो खिचवाते हैं और फिर २०-२० रूपया…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 23, 2013 at 8:39pm — 46 Comments

लघुकथा : कीमत (गणेश जी बागी)

शास्त्री जी बहुत खुश हैं, नए घर का आज गृह प्रवेश समारोह है ।  विदेश से कंस्ट्रक्शन मैनेजमेंट की पढ़ाई पूर्ण कर इकलौता बेटा भी कल घर पहुँच गया था ।

"पापा, गेस्ट आ गये हैं आप कहें तो डिनर स्टार्ट करवा दूँ"

"नहीं बेटा, कुछ विशिष्ट अतिथियों का मैं इन्तजार कर रहा हूँ पहले वो आ जाएँ फिर भोजन प्रारम्भ कराते हैं" शास्त्री जी ने बेटे को समझाया ।

"विशिष्ट अतिथि कौन पापा ?"

"इस घर को अपने श्रम और पसीने से बनाने वाले मिस्त्री और मजदूर"

"उफ्फ ! आप…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 9, 2013 at 9:31pm — 43 Comments

अतुकांत कविता - नि:शब्द (गणेश जी बागी)

शब्द कोष से संकलित

क्लिष्ट शब्दों का समुच्चय

गद्यनुमा खण्डित पक्तियों में

शब्द संयोजन

कथ्य और प्रयोजन से कोसों दूर

लक्ष्यहीन तीरों के मानिंद

बिम्ब और प्रतीक

कही तो जा धसेंगे

बस

वही होगा लक्ष्य

फिर.......

पाठक का द्वन्द्ध

बार-बार पढ़ना

पग-पग पर अटकना

समझने का प्रयत्न

गुणा भाग, जोड़ घटाव

सुडोकू सुलझाने का प्रयास

और अंततः

एक प्रतिक्रिया

नि:शब्द हूँ ।

***

(मौलिक व…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 5, 2013 at 11:30am — 51 Comments

लघुकथा : छवि (गणेश जी बागी)

घु सुबह-सुबह ऑटो रिक्शा लेकर सड़क पर निकला ही था क़ि तभी ट्रैफिक पुलिस के एक सिपाही ने हाथ देकर रिक्शा रोक लिया, रघु एक अंजाने भय से कांप गया |

"स्टेशन जा रहे हो क्या ? चलो मुझे भी चलना है" सिपाही जी अपने चिरपरिचित अंदाज मे बोले |

"जी, साहब, स्टेशन ही जा रहे हैं"

आज दिन ही खराब है, सुबह सुबह पता नही किसका मुँह देख लिया था, अभी बोहनी भी नही हुई और सिपाही जी आकर बैठ गये, मन ही मन खुद को कोसते हुए रघु गंतव्य की ओर बढ़ चला | रघु स्टेशन पहुँच कर सभी…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 2, 2013 at 4:13pm — 36 Comments

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