जीवन के इस मोड़ पे
शब्दों से घटाने
और कविताओं के जोड़ में
अनुभवों के सागर में
और इस धरती पे जीवन के
निचोड़ से
क्या सीखा मैंने?
रोता रहा हूँ कई बार
और कोसा भी सबको मैंने
किस्मत के आगे भीख मागी
और पुकारा रब को भी मैंने…
ContinueAdded by अनुपम ध्यानी on August 12, 2010 at 12:14pm — 3 Comments
Added by अनुपम ध्यानी on August 7, 2010 at 1:24am — No Comments
Added by अनुपम ध्यानी on August 5, 2010 at 10:01pm — 2 Comments
Added by अनुपम ध्यानी on August 5, 2010 at 8:30am — 10 Comments
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