For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Pushyamitra Upadhyay's Blog – December 2012 Archive (7)

सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आयंगे

छोडो मेहँदी खडक संभालो

खुद ही अपना चीर बचा लो

द्यूत बिछाये बैठे शकुनि,

मस्तक सब बिक जायेंगे

सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आयेंगे

कब तक आस लगाओगी तुम,

बिक़े हुए अखबारों से,

कैसी रक्षा मांग रही हो

दुशासन दरबारों से|

स्वयं जो लज्जा हीन पड़े हैं

वे क्या लाज बचायेंगे

सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो अब गोविंद ना आयंगे

कल तक केवल अँधा राजा,

अब गूंगा बहरा भी है

होठ सी दिए हैं जनता के,

कानों पर पहरा भी है

तुम ही…

Continue

Added by Pushyamitra Upadhyay on December 28, 2012 at 4:59pm — 12 Comments

हमतुम में अब ये खामोशियाँ रहने दो

गर सब धुँआ है तो धुआँ रहने दो

अब जो जहां है उसे वहां रहने दो

 

सभी रिश्ते सुलझ जाएँ तो मजा कैसा

कुछ उलझनें भी तो दरम्याँ रहने दो



हर डगर फूल बिछाए नहीं मिलती

जलजलों में भी ये कारवां रहने दो



रहने वाला ही जब खो गया है कहीं

लापता फिर ये भी आशियाँ रहने दो



ये भी क्या कि तुम ही हर जगह रहोगे

कहीं तो जमीन ओ आसमाँ रहने दो



सहमे लफ़्ज़ों से रिश्ते संभलते कहाँ हैं

हमतुम में अब ये खामोशियाँ रहने दो



-पुष्यमित्र…

Continue

Added by Pushyamitra Upadhyay on December 18, 2012 at 12:07am — 2 Comments

पता तो चले

और कितनी है जुदाई पता तो चले

वो मेरी है या पराई, पता तो चले



यूं बहारों पे कब्ज़ा यूं फिजाओं पे हुक्म

अदा ये किसने सिखाई पता तो चले



कँवल खिलने लगे अब्र जलने लगे

किसने ले ली अंगडाई पता तो चले



ये किसने छुआ है, ये किसका नशा है

ये कली क्यों बलखाई पता तो चले



चाँद खिलने लगा गुल महक से गये

मेहँदी किसने रचाई पता तो चले



खोलकर आज गेसू वो मुस्कुरा गये

मौत किसपे है आई पता तो चले



गनीमत यही उन्हें मुहब्बत तो हुई

कुछ उन्हें भी…

Continue

Added by Pushyamitra Upadhyay on December 12, 2012 at 2:21pm — 10 Comments

फूल ताउम्र तो बहारों में नहीं रहते



फूल ताउम्र तो बहारों में नहीं रहते

हम भी अब अपने यारों में नहीं रहते



मुहब्बत है गर तो आज ही कह दो मुझसे

ये फैसले यूं उधारों में नहीं रहते



अब जानी है हमने दुनिया की हकीकत

अब हम आपके खुमारों में नहीं रहते



दिल तोड़ दो बेफिक्र कोई कुछ न कहेगा

ये छोटे से किस्से अखबारों में नहीं रहते



मेरा रकीब भी आज मेरी खिलाफत में है

लोग हमेशा तो किरदारों में नहीं रहते



बस वजूद की ही जंग है महफिलों में बाकी

वो तूफ़ान भी अब आशारों में नही…

Continue

Added by Pushyamitra Upadhyay on December 11, 2012 at 7:38pm — 18 Comments

सर्दियां

उस साल

कहर सी थी सर्दी

ठिठुरन बढ़ रही थी

हमने जेहन में खड़े कुछ दरख्त काटे

और जला लिए कागज़ पर

ज्यादा तो नहीं मगर हाँ....

थोड़ी तो राहत मिल ही गयी

पास से गुजरते हुए लोग भी

तापने के लिए बैठने लगे

अलाव धीरे धीरे... महफ़िल सा बन गया

 अलाव जब बुझ गया ..लोग चले गये

फिर तो

रोज़ ही हम कुछ दरख्त काट लाते

रोज़ अलाव जलता रोज़ ही लोग आते

इस तरह हर रोज़ महफ़िल सजने लगी

मगर एक ताज्जुब ये था कि

रोज़ ही काटे जाने पर भी

दरख्त कभी कम नहीं होते…

Continue

Added by Pushyamitra Upadhyay on December 10, 2012 at 9:52pm — 3 Comments

किस तरह..

अब तुम पर यकीं कर पायें किस तरह

हम और अब तुम्हे आजमायें किस तरह



ये ख़याल उनको सताता ही रहा

वो मुझको सताएं तो सताएं किस तरह



ये कत्ल हुआ जाने या जाने वो कातिल

क़त्ल करने लगीं ये निगाहें किस तरह



वक़्त के हरेक टुकड़े में खोया तुम्हें

वो गुजरा हुआ वक़्त लायें किस तरह



वो जो हंसकर मिलें बात कुछ तो बढे

अब बुतों से भला बतलाएं किस तरह



वो पूछते हैं फिर रहे तरीके प्यार के

मैं पूछता फिरा तुम्हे भुलाएं किस तरह



बस तेरी है तमन्ना एक…

Continue

Added by Pushyamitra Upadhyay on December 6, 2012 at 9:22pm — 2 Comments

हमारे इश्क का फैसला तो हमीं से होगा

न किसी खाप न किसी मौलवी से होगा

हमारे इश्क का फैसला तो हमीं से होगा



ये कह कर ठुकरा गया वो आसमाँ मुझे

हमारा वास्ता ही क्या तेरी जमीं से होगा



यूं दुआ को न तरस, यूं दवा को न ढूंढ

ज़ख्म इश्क ने दिया, ठीक शायरी से होगा



बेफिकर घूमता है, इश्क से अनछुआ

मुखातिब वो भी तो कभी दिल्लगी से होगा



यूं भी जिन्दगी किसी से बेताल्लुक नहीं होती

तेरा मिलना ही जरुर बुजदिली से होगा



मेरी ग़ुरबत पे कर कुछ निगाह कुछ करम

ये अंधेरों का मसला हल रौशनी से…

Continue

Added by Pushyamitra Upadhyay on December 5, 2012 at 7:06pm — 5 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   वाह ! प्रदत्त चित्र के माध्यम से आपने बारिश के मौसम में हर एक के लिए उपयोगी छाते पर…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत कुण्डलिया छंदों की सराहना हेतु आपका हार्दिक…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, कुण्डलिया छंद पर आपका अच्छा प्रयास हुआ है किन्तु  दोहे वाले…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया छंद रचा…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आती उसकी बात, जिसे है हरदम परखा। वही गर्म कप चाय, अधूरी जिस बिन बरखा// वाह चाय के बिना तो बारिश की…"
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीया "
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"बारिश का भय त्याग, साथ प्रियतम के जाओ। वाहन का सुख छोड़, एक छतरी में आओ॥//..बहुत सुन्दर..हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्र पर आपके सभी छंद बहुत मोहक और चित्रानुरूप हैॅ। हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेश कल्याण जी।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आयोजन में आपकी उपस्थिति और आपकी प्रस्तुति का स्वागत…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आप तो बिलासपुर जा कर वापस धमतरी आएँगे ही आएँगे. लेकिन मैं आभी विस्थापन के दौर से गुजर रहा…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service