आजकल कोई बुलाता भी नहीं।
आजकल मैं भी कहीं जाता नहीं
आजकल हर ओर है बदली फिज़ा
आजकल गायब है चेहरे से गीज़ा॥
आजकल कुछ भी सुहाता ही नहीं।
आजकल मैं गुनगुनाता भी नहीं
आजकल बदले हुए हालात हैं
आजकल मैं मुस्कुराता भी नहीं॥
आजकल बेकार है सब कोशिशें।
आजकल हैं लग रही बस बंदिशें
आजकल अपने ही छलते हैं यहाँ
आजकल हैं सब बहुत बस परेशां॥
आजकल वादों की ही भरमार है।
आजकल गैरों के सर पे हाथ…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on November 30, 2018 at 4:00pm — 2 Comments
ज़िंदगी दी है खुदा ने,मुस्कुराने के लिए
भूलना लाज़िम है तुमको,याद आने के लिए
बेखयाली मे कदम फ़िर, खींच लाये है मुझे
मैं नहीं आया किसी का, दिल चुराने के लिए
यूँ ही मिल जाए कोई फ़िर, क़द्र करता ही…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on November 21, 2018 at 1:00pm — 3 Comments
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