1222 1222 1222
उसे कह दो जहाँ हूँ मैं वहाँ समझे
ज़मीं हूँ मैं, न मुझको आसमाँ समझे
हो किससे गुफ़्तगू इस दश्ते वीराँ में
कोई तो हो, जो मेरी भी ज़बाँ समझे
हक़ीक़त आशना है क्यूँ भला वो भी
है राहे संग उसको कहकशाँ समझे
छिनी रोटी तो छायी बद हवासी है
मुझे मयख़्वार क्यूँ सारा जहाँ समझे
मुहज़्ज़ब जो दबा लेता है नफरत, को
सही समझे अगर, आतिशफ़िशाँ समझे
तू वो ही है , जो सच में है तेरे…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on November 23, 2016 at 11:05am — 26 Comments
122 122 122 122
ये माना कि हर सम्त कुछ बेबसी है
मगर हौसलों की बची ज़िन्दगी है
बुझेगी नहीं चाहे आंधी भी आये
ये अंदर से आयी है वो रोशनी है
लकीरें हथेली की सारी थीं झूठी
जो कहती थीं आगे खुशी ही खुशी है
वो भूँके या काटे, डसे आस्तीं को
अगर आदमी था, तो वो आदमी है
बिना ज़हर वाले बने हैं गिज़ा सब
ये क़ीमत चुकाई यहाँ सादगी है
घराना उजालों का था जिनका, उनका
सुना…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on November 10, 2016 at 9:33am — 5 Comments
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