मुक्तिका:
हो रहे
संजीव 'सलिल'
*
घना जो अन्धकार है तो हो रहे तो हो रहे।
बनेंगे हम चराग श्वास खो रहे तो खो रहे।।
*
जमीन चाहतों की बखर हँस रही हैं कोशिशें।
बूंद पसीने की फसल बो रहे तो बो रहे।।
*
अतीत बोझ बन गया, है भार वर्तमान भी।
भविष्य चंद ख्वाब, मौन ढो…
Added by sanjiv verma 'salil' on November 27, 2012 at 9:24am — 3 Comments
गीत:
हर सड़क के किनारे
संजीव 'सलिल'
*
हर सड़क के किनारे हैं उखड़े हुए,
धूसरित धूल में, अश्रु लिथड़े हुए.....
*
कुछ जवां, कुछ हसीं, हँस मटकते हुए,
नाज़नीनों के नखरे लचकते हुए।
कहकहे गूँजते, पीर-दुःख भूलते-
दिलफरेबी लटें, पग थिरकते हुए।।
बेतहाशा खुशी, मुक्त मति चंचला,
गति नियंत्रित नहीं, दिग्भ्रमित मनचला।
कीमती थे वसन किन्तु चिथड़े हुए-
हर सड़क के किनारे हैं उखड़े हुए,
धूसरित धूल में, अश्रु लिथड़े हुए.....
*
चाह की रैलियाँ,…
Added by sanjiv verma 'salil' on November 24, 2012 at 8:16am — 9 Comments
दोहा सलिला
नीति के दोहे
संजीव 'सलिल'
*
रखें काम से काम तो, कर पायें आराम .
व्यर्थ घुसेड़ें नाक तो हो आराम हराम।।
खाली रहे दिमाग तो, बस जाता शैतान।
बेसिर-पैर विचार से, मन होता हैरान।।
फलता है विश्वास ही, शंका हरती बुद्धि।
कोशिश करिए अनवरत, 'सलिल' तभी हो शुद्धि।।
सकाराsत्मक साथ से, शुभ मिलता परिणाम।
नकाराsत्मक मित्रता, हो घातक अंजाम।।
दोष गैर के देखना, खुद को करता हीन।
अपने दोष सुधारता, जो- वह रहे न दीन।।…
Added by sanjiv verma 'salil' on November 18, 2012 at 1:21pm — 1 Comment
मुक्तिका:
तनहा-तनहा
संजीव 'सलिल'
*
हम अभिमानी तनहा-तनहा।
वे बेमानी तनहा-तनहा।।
कम शिक्षित पर समझदार है
अकल सयानी तनहा-तनहा।।
दाना होकर भी करती मति
नित नादानी तनहा-तनहा।।
जीते जी ही करी मौत की
हँस अगवानी तनहा-तनहा।।
ईमां पर बेईमानी की-
नव निगरानी तनहा-तनहा।।
खीर-प्रथा बघराकर नववधु
चुप मुस्कानी तनहा-तनहा।।
उषा लुभानी सांझ सुहानी,
निशा न भानी तनहा-तनहा।।
सुरा-सुन्दरी का याचक…
Added by sanjiv verma 'salil' on November 14, 2012 at 11:51am — 9 Comments
गीत:
उत्तर, खोज रहे...
संजीव 'सलिल'
*
उत्तर, खोज रहे प्रश्नों को, हाथ न आते।
मृग मरीचिकावत दिखते, पल में खो जाते।
*
कैसा विभ्रम राजनीति, पद-नीति हो गयी।
लोकतन्त्र में लोभतन्त्र, विष-बेल बो गयी।।
नेता-अफसर-व्यापारी, जन-हित मिल खाते...
*
नाग-साँप-बिच्छू, विषधर उम्मीदवार हैं।
भ्रष्टों से डर मतदाता करता गुहार है।।
दलदल-मरुथल शिखरों को बौना बतलाते...
*
एक हाथ से दे, दूजे से ले लेता है।
संविधान बिन पेंदी नैया खे लेता…
Added by sanjiv verma 'salil' on November 2, 2012 at 5:56pm — 7 Comments
विवाह : एक दृष्टि
द्वैत मिटा अद्वैत वर...
संजीव 'सलिल'
*
रक्त-शुद्धि सिद्धांत है, त्याज्य- कहे विज्ञान।
रोग आनुवंशिक बढ़ें, जिनका नहीं निदान।।
पितृ-वंश में पीढ़ियाँ, सात मानिये त्याज्य।
मातृ-वंश में पीढ़ियाँ, पाँच नहीं अनुराग्य।।
नीति:पिताक्षर-मिताक्षर, वैज्ञानिक सिद्धांत।
नहीं मानकर मिट रहे, असमय ही दिग्भ्रांत।।
सहपाठी गुरु-बहिन या, गुरु-भाई भी वर्ज्य।
समस्थान संबंध से, कम होता सुख-सर्ज्य।।
अल्ल गोत्र कुल आँकना, सुविचारित…
Added by sanjiv verma 'salil' on November 2, 2012 at 11:08am — 3 Comments
गीत:
समाधित रहो ....
संजीव 'सलिल'
+
चाँद ने जब किया चाँदनी दे नमन,
कब कहा है उसी का क्षितिज भू गगन।
दे रहा झूमकर सृष्टि को रूप नव-
कह रहा देव की भेंट ले अंजुमन।।
जो जताते हैं हक वे न सच जानते,
जानते भी अगर तो नहीं मानते।
'स्व' करें 'सर्व' को चाह जिनमें पली-
रार सच से सदा वे रहे ठानते।।
दिन दिनेशी कहें, जल मगर सर्वहित,
मौन राकेश दे, शांति सबको अमित।
राहु-केतु ग्रसें, पंथ फिर भी न तज-
बाँटता रौशनी, दीप होता…
Added by sanjiv verma 'salil' on November 2, 2012 at 10:06am — 8 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |