सीते मुझे साकेत विस्मृत क्यों नहीं होता !
सीते मुझे साकेत विस्मृत क्यों नहीं होता !
Added by shikha kaushik on October 29, 2012 at 10:30pm — 6 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 22, 2012 at 6:54pm — 7 Comments
Added by shikha kaushik on October 22, 2012 at 3:32pm — 7 Comments
प्रश्नवाची
मन हुआ है, हैं सुलगते अभिकथन
क्या मुझे अधिकार है ये
मैं दशानन को जलाऊँ ??
खींच कर
रेखा अहम् की शक्त वर्तुल से घिरी हूँ
आइना भी क्या करे जब मैं तिमिर की कोठरी हूँ
दर्प की आपाद मस्तक स्याह चादर ओढ़ कर
क्या मुझे अधिकार है
'दम्भी 'दशानन को बताऊँ ??
झूठ, माया-मोह
ईर्ष्या के असुर नित रास करते
स्वार्थ की चिंगारियों से प्रिय सभी रिश्ते सुलगते
पुण्य पापों को बता कर सत्य पर भूरज…
Added by seema agrawal on October 22, 2012 at 11:31am — 15 Comments
अर्थ रह गए गलियारों में शब्द बिक रहे बाजारों में
रचनाओं के सृजन कर्ता भटक रहे हैं अंधियारों में ।।
केवट भी तो तारक ही था जिसने तारा तारन हारा
कलयुग में ये दोनों अटके विषयों के मझधारों में ।।
कृष्ण नीति की पुस्तक गीता सच्चाई को तरसे देखो
हर धर्म धार दे रहा बेहिचक आतंकी के औजारों में ।।
मंदिर मस्जिद घूम रहा है धर्म नहीं है जिस पंछी का
धर्म ज्ञान को रखने वाला झुलस रहा है अंगारों में ।।
धर्मों के…
ContinueAdded by Manoj Nautiyal on October 22, 2012 at 9:58am — 5 Comments
नहि भेद लिखे कछु वेद कवी सब गाल बजावत मंचहि पे
निज वेशहि की परवाह करें बस ध्यान धरें धन संचहि पे
अब ब्रम्ह बने सूतहि जब है सब ज्ञान बखान विरंचहि पे
कलि कौतुक देख हसे सुर है गुरु बैठत है अब बेंचहि पे
कलिकाल धरा विकराल बढ़ा सुत मातु पिता नहि मानत है
धन की महिमा सब ओर सखे धनही सबका पहिचानत है
घर की नहि नारिहि मान करे ललचाय पराय अमानत है
सनदोह सहोदर मोह नही अब दारहि का सब जानत है
चिदानन्द शुक्ल "सनदोह"
Added by Chidanand Shukla on October 21, 2012 at 9:00pm — 16 Comments
चारागर की ख़ता नहीं कोई.
दर्दे-दिल की दवा नहीं कोई.
आप आये न मौसमे-गुल में,
इससे बढ़कर सज़ा नहीं कोई.
ग़म से भरपूर है किताबे-दिल,
ऐश का हाशिया नहीं कोई.
देख दुनिया को अच्छी नज़रों से,
सब भले हैं बुरा नहीं कोई.
सच का हामी है कौन पूछा तो,
वक़्त ने कह दिया नहीं कोई.
है सफ़र दश्ते-नाउम्मीदी का,
मौतेबर रहनुमा नहीं कोई.
अपने ही घर में हैं पराये हम,
बेग़रज़ राबता नहीं कोई.
इस…
Added by लतीफ़ ख़ान on October 17, 2012 at 6:00pm — 8 Comments
आज मैं शहर छोड़ आया उसका,
वो शहर जो हर पल मुझे,
बस याद उसकी दिलाता था,
वो शहर की जिसमें महकती थी,
बस उसी की खुशबू,
वो शहर जहां हर ओर उसके ही नगमे गूँजा करते थे,
वो वही शहर था जहां रहते थे,
बस चाहने वाले उसके,
आज भी बस शहर ही छूटा है उसका,
पर यादें अभी भी बाकी हैं किसी कोने में,
अपने इस नए शहर में भी बस,
उसकी ही परछाइयों कोई खोजता फिरता हूँ मैं,
बेशक शहर छोड़ दिया उसका मैंने,
पर इस नए शहर में भी मैं उसको ही खोजता हूँ,
बस शहर ही…
ContinueAdded by पियूष कुमार पंत on October 4, 2012 at 9:10pm — 4 Comments
ये जीवन मानों -
मुट्ठी भर रेत
झरती हैं खुशियाँ
झरते हैं सपने
इक पल
हँसना तो
दूजे पल
क्लेश
ये....................
रेतघड़ी समय की
चलती ही रहती
लम्हों की पूंजी
हाथ से फिसलती
बस स्मृतियों के
रह जाते अवशेष
ये....................
किसी से हो मिलना
किसी से बिछड़ना
जग के मेले में
बंजारे सा फिरना
दुनिया आनी जानी -
सत्य यह अशेष
ये .......................
Added by Vinita Shukla on October 4, 2012 at 10:31am — 8 Comments
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