For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sushil Sarna's Blog – September 2015 Archive (9)

तुम इसे तवज्जो न देना........

तुम इसे तवज्जो न देना ....



ये बादे सबा अगर

तुम्हें मेरे दर्द का पैगाम दे जाये

तो अपने ज़हन में

करवटें लेते खुशनुमा अहसासों पर

तुम तवज्जो न देना

किसी तारीक शब को

अब्र से झांकता माहताब

पीला नज़र आये

तो तन्हाई से गुफ़्तगू करती

मेरी खामोशियों पर

तुम तवज्जो न देना

सड़क पर चलते

तुम्हारे पाँव के नीचे

कोई ज़र्द पत्ता चीखे

तो गर्द में डूबे

मेरी मुहब्बत के

बदलते मौसम पर

तुम तवज्जो न…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 29, 2015 at 7:30pm — 10 Comments

आत्मिक प्रेमतत्व

आत्मिक प्रेमतत्व …

जलतरंग से

मन के गहन भावों को

अभिव्यक्त करना

कितना कठिन है

हम किसको प्रेम करते हैं ?

उसको !

जिसके संग हमने

पवन अग्नि कुण्ड के चोरों ओर

सात फेरे लिए

या उसको

जिसके प्रेम में

स्वयं को आत्मसात कर हम

जीवन के समस्त क्षण

उसके नाम कर दिए

एक प्रेम

जीवन के अंत को जीवन देता है

और दूसरा अंतहीन जीवन को अंत देता है

जिस प्रेम को बार बार

शाब्दिक अभिव्यक्ति की आसक्ति हो …

Continue

Added by Sushil Sarna on September 25, 2015 at 8:30pm — 10 Comments

कीचड़ .....

कीचड़ .....

सड़क पर फैले हुए कीचड से

एक कार के गुजरने से

एक भिखारन के बदन पर

सारा कीचड फ़ैल गया

अपनी फटी हुई साड़ी से कीचड़ पौंछते हुए

उसने अपने मन की भंडास निकालते हुए कहा

अमीरजादे गाड़ी से कीचड उछालते हैं

और पलट के भी नहीं देखते

इन्हें भूख से बिलबिलाते हुए

पेट को भरने के लिए रक्खा

भीख का कटोरा नजर नही आता

बस फ़टे कपड़ों से झांकता

बदन नज़र आता है

मेहरबानी पेट पर नहीं

बस बदन पर होती है

वो खुद पर गिरे कीचड़ को

साफ़…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 21, 2015 at 8:00pm — 6 Comments

तृषा जन्मों की .....

तृषा जन्मों की .....

मर्म धर्म का समझो पहले

फिर करना प्रभु का ध्यान

क्या पाओगे काशी में

है हृदय में प्रभु का धाम

पावन गंगा का दोष नहीं

सब है कर्मों का फल

अच्छे कर्म नहीं है तो फिर

गंगा सिर्फ है जल

मानव भ्रम में जीने का

क्यों करता अभिमान

सच्चा सुख नहीं तीरथ में

व्यर्थ भटके नादान

कर्म प्रभु है, कर्म है गंगा

कर्म है सर्वशक्तिमान

राशि रत्न और ग्रह शान्ति से

कैसे मुशिकल हो आसान

अपने मन की कंदरा में…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 16, 2015 at 3:56pm — 10 Comments

ओस के शबनमी कतरों में …

ओस के शबनमी कतरों में …

सर्द सुबह

कोहरे का कहर

सिकुड़ते जज़्बातों की तरह ठिठुरती

सहमी सी सहर

ओस की शबनम में भीगी

चिनार के पेड़ों हिलाती

आफ़ताब की किरणों को छू कर गुजरती

हसीन वादियों की बादे-सबा

रूह को यादों के लिबास में लपेट

जिस्म को बैचैन कर जाती है

तुम आज भी मुझे

धुंध में गुम होती पगडंडी पर

खड़ी नज़र आती हो



मैं बेबस सा

अपने तसव्वुर में

हर शब-ओ-सहर बिताये

हसीन लम्हों…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 13, 2015 at 2:31pm — 4 Comments

टूटे सपने … (लघुकथा)...

टूटे सपने … (लघुकथा)

"राधिका ! आओ बेटी , अविनाश जाने की जल्दी कर रहा है। " माँ ने राधिका को आवाज़ लगाते हुई कहा।

''अभी आयी माँ, बस दो मिनट में आती हूँ। '' राधिका ने आईने के सामने बैठे बैठे ही जवाब दिया। आज अविनाश कितने समय के बाद विदेश से आया है। आज मैं उसे अपने मन की बात कह ही डालूंगी ,राधिका मन ही मन बुदबुदाई। जल्दी से आँखों में काजल की धार बना वो ड्राईंग रूम में आई।

''हाय अविनाश कैसे हो ? विदेश में कभी हमारी याद भी आती थी या गोरी मेमों में ग़ुम रहते थे। ''

''अरे नहीं…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 8, 2015 at 2:30pm — 6 Comments

मेरे शानों पे .....

मेरे शानों पे .....

साँझ होते ही मेरे तसव्वुर में

तेरी बेपनाह यादें

अपने हाथों में तूलिका लिए

मेरी ख़ल्वत के कैनवास पर

तैरती शून्यता में

अपना रंग भरने आ जाती हैं

रक्स करती

तेरी यादों के पाँव में

घुंघरू बाँध

अपने अस्तित्व का

अहसास करा जाती हैं

मेरी रूह की तिश्नगी को 

अपनी दूरी से

और बढ़ा जाती हैं

मेरे अश्क

मेरी पलकों की दहलीज़ पे

चहलकदमी करने लगते हैं

न जाने कब

सियाह…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 7, 2015 at 10:22pm — 16 Comments

यादों के दरीचों में .....

यादों के दरीचों में .....

सच, तुम्हारी कसम

उस वक्त तुम बहुत याद आये थे

जब सावन की पहली बूँद

मेरी ज़ुल्फ़ों से झगड़ा करके

मेरे रुखसारों पर

फिसलने की ज़िद करने लगी

सबा को भी उस वक्त

मेरी ज़ुल्फ़ों से

छेड़खानी करने की ज़िद थी

इस छेड़खानी में कभी बूंदें

रेतीली ज़मीन पर गिर कर

अपना अस्तित्व खो देती थी

तो कभी पलकों की चिलमन पर

सज के बैठ जाती थी

कभी हौले से

रुख़्सार पर फिसलती हुई

मेरी ठोडी पर

किसी को प्यार के…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 4, 2015 at 8:13pm — 10 Comments

चाँद के माथे पे शायद ...........

चाँद के माथे पे शायद .......

चाँद के माथे पे शायद

दुनिया के लिए सिर्फ दाग है

पर दाग वाला चाँद ही

आसमां का ताज़ है

करता वो अपनी चांदनी से

मुहब्बतों की बरसात है

है नहीं वो दिल ज़मीं पे

जिसमें वो बसता नहीं

हों खुली या बंद पलकें

ये हर पलक का ख़्वाब है

अब्र से सावन में छुपकर

वो झांकता है इस तरह

हो रही ज़ुल्फ़ों से जैसे

नूर की बरसात है

हर खुशी के लम्हों में

होते हैं पल कुछ ऐसे भी

बीती शब के दर्द के…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 1, 2015 at 5:41pm — 8 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
6 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
9 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
11 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. अजय जी "
14 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"मोर या कौवा --------------- बूढ़ा कौवा अपने पोते को समझा रहा था। "देखो बेटा, ये हमारे साथ पहले…"
15 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"जी आभार। निरंतर विमर्श गुणवत्ता वृद्धि करते हैं। अपनी एक ग़ज़ल का मतला पेश करता हूँ। पूरी ग़ज़ल भी कभी…"
15 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"क़रीना पर आपके शेर से संतुष्ट हूँ. महीना वाला शेर अब बेहतर हुआ है .बहुत बहुत बधाई "
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"हार्दिक स्वागत आपका गोष्ठी और रचना पटल पर उपस्थिति हेतु।  अपनी प्रतिक्रिया और राय से मुझे…"
16 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"आप की प्रयोगधर्मिता प्रशंसनीय है आदरणीय उस्मानी जी। लघुकथा के क्षेत्र में निरन्तर आप नवीन प्रयोग कर…"
16 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी। बधाई स्वीकार करें।"
16 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"मौसम का क्या मिज़ाज रहेगा पता नहीं  इस डर में जाये साल-महीना किसान ka अपनी राय दीजिएगा और…"
16 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service