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KALPANA BHATT ('रौनक़')'s Blog – September 2016 Archive (3)

गुमान (कविता )

क्यों करते

खुदकी वाह वाही

होती उसकी

फिर बुराई

माना बहुत कुछ

जान गये हो

खुद को भी

पहचान गये हो

न इतना

गुमान करो

खुद का खुद

सम्मान हरो

अच्छे हो

जानो खुदको

इन्सां हो

मानो खुदको ।

चलो भले

अपनी ही चाल

न खींचों

दूसरों की खाल

धीरे धीरे

चलना है

दौड़ना नहीं

बस चलना है ।

जय हो जय हो

का नारा छोड़ो

स्व तारीफ़ से

नाता तोडो ।

एक दिन

पेड़ क्या

बन जाओगे

ज़मीन…

Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 29, 2016 at 10:30pm — 12 Comments

ख़ामोशी ( कविता )

क्यों खामोश हो

कुछ बोलते भी नहीं

कुछ कहते भी नहीं

कुछ सुनते भी नहीं



वो देखो वहाँ

क्षितिज के किनारे

आकार ले रहा है

प्यार बादलों में



वो देखो  वहाँ

उन लहरों को

जो कर रही है बयां

प्यार चट्टानों से



वो देखो वहाँ

उन परिंदो को

जो उड़ते हुए भी

कर रहे बातें बादलों से



वो देखो वहाँ

रंग बदलते आस्मां को

किस तरह रंग बदलता है

बिलकुल तुम्हारी ही तरह



गुलाबी फ़ज़ाओं…

Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 22, 2016 at 3:00pm — 10 Comments

मैं बंजारन (कविता )

मैं बंजारन खोज रही हूँ

तेरे निशाँ

यह रेत के टीले

मिटा रहें है जो  निशानियाँ ,

घूम घूम कर तलाश रही हूँ

तेरे कदमों के चिह्न

जो कभी हुआ करते थे

इन्हीं  रेतीली ज़मीन पर |



आती थी आवाज़ तुम्हारी

दूर से ही

पुकारते हुए दौड़े चले आते थे ,

तुम अपने घर से

मुझसे मिलने को ,

गवाह है -

यह यहाँ की  सर ज़मीं |



वो कटीले पौधे

जो चुभ जाते थे तुम्हें

आज भी यहीं हैं

देखती हूँ इनपर

तुम्हारा सुखा…

Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 20, 2016 at 3:30pm — 10 Comments

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