अचानक अजीब मनोदशा
अँधेरी हो रही हैं धुँधली आँखें
कुछ नहीं जानता मैं अब भँवर में
कुछ भी नहीं पहचानता हूँ अंत में
यह निसत्बध्ता, यह काया
एकाकार हो रहे हैं क्या ?
साथ बंधी आ रही हैं कभी की
रात देर तक करी हमारी बातें
समुद्र की लहर-सी छलकती
अमृत के झरनों-सी हम दोनों की हँसी
आँखों में ठहरे कभी के अनुच्चरित प्रश्न
पल में तुम्हारा परिचित चिंता में डूब जाना
उफ़्फ़.. इतने वर्षों के बाद भी वही है…
ContinueAdded by vijay nikore on August 8, 2019 at 6:14pm — 8 Comments
कहे-अनसुने-से रहे कुछ जज़्बात
उसपर अनकहे एहसासों का भार
अजीब-सी बेचैन बेकाबू धड़कन का
तकलीफ़-भरा भयानक शोर ...
पन्नों पर उतर तो आते हैं यह
पर भरमाया घबराया मन
इनकार भरा
भार कोई हल्का नहीं होता
पगलाई अन्दरूनी हवाएँ
खयालों-सी वेगवान
झकझोरती आसमानी तूफ़ान बनी
लफ़्ज़ों से लफ़्ज़ टकराते
सूखे पेड़ों-से छूटे पत्तों की तरह
आढ़ी-टेढ़ी लकीरों को बेतहाशा समेटते
लुढ़क जाती है स्याही
रात अँधेरी…
ContinueAdded by vijay nikore on August 5, 2019 at 7:52am — 6 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |