जन्माष्टी के उपलक्ष में निवेदित रचना-
विमुग्ध हो फूल का रसपान कर
ज्यों त्यागते हों भ्रमर !
भाँति तेरे कृष्ण भी,
बंशी सुनाते,
चुरा कर चित्त कुब्जा में रमें
छोड़ दी मेरी खबर ।
पीत पर लहराता है तू भी,
निज मित्र के पट पीत सम,
तू भी काला श्याम सा
कपटी कुचाली प्रीति डोरी तोड़ पल में
मन रिझाता है ।
भृंग की भनक संदेश है क्या?
पर...
गोपियां सुनतीं व्यथा कह उससे,
द्वन्द्व, मन का घटातीं,
प्रेम जो…
Added by Vindu Babu on August 24, 2013 at 6:30pm — 5 Comments
Added by Vindu Babu on August 17, 2013 at 9:27am — 17 Comments
Added by Vindu Babu on August 9, 2013 at 8:58am — 20 Comments
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